रतलाम भाजपा के महापौर उमीदवार के बाद अब पार्षदों की घोषणा हो गयी है, इस बार चयन को लेकर जनता में असंतोष साफ़ देखने को मिलता है
रतलाम/इंडियामिक्स रतलाम में निकाय चुनावो को लेकर महापौर और पार्षदों की घोषणा होने के बाद पार्टी के ज्यादातर कार्यकर्ताओ और क्षेत्र वासियों में असंतोष साफ़ देखने को मिल रहा हैं । हमारी टीम ने ऐसे ही क्षेत्रो में जाकर जब लोगो से बात करने की कोशिश की तो शुरू में तो लोगो ने कहा की भाजपा ने अच्छे उमीदवार दिए है । मगर थोड़ी देर और बात करने के बाद लोगो ने अपने दिल की बात बताना शुरू कर दी। खुलकर बात करने से परहेज़ करने वाले भाजपा कार्यकर्त्ता भी कही न कही इस बार पार्टी की चयन प्रक्रिया से नाराज़ है. मगर खुलकर सामने नहीं आ रहे हैं ।
कई लोगो ने कैमरे के सामने कुछ भी बोलने से इनकार कर दिया मगर जब हमने उन्हें विश्वास दिलाया की हम न आपका नाम जाहिर करेंगे और न ही आपकी कोई रिकॉर्डिंग होगी । तब कही जाकर लोगो ने अपने मन की बात हमसे करना शुरू की ।
अशोक पोरवाल क्यों हटे, प्रह्लाद पटेल कैसे आये
सबसे पहले हमने लोगो से महापौर उमीदवार के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा की प्रह्लाद पटेल भले ही पार्टी की पसंद हो मगर धरातल पर कार्यकर्ता या जनता में उनकी कोई पकड़ या लोकप्रियता नज़र नही आती. उनका चयन होना लोगो और खुद पार्टी के कार्यकर्ताओ के लिए चौकाने वाली खबर थी. चूँकि प्रह्लाद पटेल की शहर विधायक से अच्छी ट्थीयूनिंग हैं और विधायक जी ने ही उनके लिए ये सीट सुनिश्चित करने में अहम् भूमिका निभाई. हलाकि प्रह्लाद पटेल के सबसे करीबी प्रतिद्वंदी अशोक पोरवाल थे. अशोक पोरवाल भी विधायक के काफी करीबी माने जाते थे. लेकिन रतलाम विधायक के साथ साथ अशोक पोरवाल को भाजपा के राष्ट्रिय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय का खास भी माना जाता हैं. बस यही वो कारण रहा, जिससे पहले तो ऊपर से अशोक पोरवाल का नाम फाइनल कर दिया गया और फिर जानभुझ कर मीडिया में इन खबरों को वायरल कर के भाजपा के नेतृत्व तक ये सन्देश भेजा गया की पार्टी की घोषणा से पूर्व ही उम्मीदवार या उनके समर्थको द्वारा मीडिया में खबरे वायरल कर दी गयी हैं जिसे पार्टी ठीक नहीं मानती. तब भाजपा ने आनन फानन में नए नाम पर मोहर लगाई.
प्रह्लाद पटेल भी विधायक के काफी करीबी है और सिर्फ उनके प्रति ही लॉयल है. जब की अशोक पोरवाल की लॉयल्टी शहर विधायक के साथ साथ इंदौर के कैलाश विजयवर्गीय के प्रति भी है. और आशंका थी की शायद उनका झुकाऊ कैलाश जी के प्रति ज्यादा रहेगा. इसलिए उन्हें राजनीति के साथ कूटनीति का उपयोग करते हुए हटाया गया होगा. क्योकि अगर अशोक पोरवाल महापौर बनते तो शहर में दो भाजपा पॉवर हाउस बनने की सम्भावनाये ज्यादा थी, और कैलाश विजयवर्गीय की रतलाम में सीधे एंट्री हो जाती । प्रदेश भाजपा को सिर्फ आश्वासन देना था विधायक जी को, की वो स्वयं नए उम्मीदवार की जीत सुनिश्चित करेंगे. जबकि रतलाम में कोई भी छोटा कार्यकर्त्ता ये लिख कर दे सकता है की रतलाम में भाजपा की जीत लगभग तय है. विधायक जी ने भी वही किया पार्टी को गारंटी दे दी प्रह्लाद पटेल को जीताने की । अहसान का अहसान हो जायेगा और पार्टी को लगेगा की पकड़ मजबूत हैं विधायक जी की.
वार्ड पार्षदों की लिस्ट आते ही अलग अलग क्षेत्र में असंतोष क्यों नज़र आ रहा है
वार्ड नंबर 19, 25, 26, 42 के लोगो से बात करने पर भी लोगो की ज्यादातर राय थी की पार्टी ने सिर्फ अपने मीटिंग के स्तर पर ही उमीदवारो की घोषणा कर दी । जबकि धरातल पर कोई सर्वे नही किया गया । बस कुछ लोग जो विधायक जी के साथ घूमते है, उन्ही के मतानुसार प्रत्याशी घोषित कर दिए गए । लोग मान रहे हैं की खुलकर पार्टी के खिलाफ तो लोग नही जायेगे और न ही बोल सकते हैं इसलिए अपने असंतोष को वोटो में बदलने की कोशिश करेंगे । 30 से 40 साल तक पार्टी के लगातार कार्य करने वाले कार्यकर्ताओ की अवहेलना पार्टी को नुकसान जरुर कर सकती हैं । चयन के आधार जो भी रहे होंगे, मगर जब नाम सामने आये तो चयन की प्रक्रिया जरुर संदेह के घेरे में नज़र आती हैं ।
वार्ड नंबर 19 श्रीमती ललिता मोनू गुर्जर और 26 के श्रीमती उमा रामचंद्र डोई संभावित उमीदवारो ने निर्दलीय पर्चा दाखिल करने का मन बना लिया हैं और संघठन की चयन प्रक्रिया से नाराजगी जाहिर की है ।
इस बार हम कई वार्डो में भाजपा के बागी उम्मीदवार देख सकते हैं. कई जगह कार्यकर्त्ता इसलिए भी नाराज़ हैं क्योकि पार्टी में पदों बने हुए लोगो के घर में टिकिट हुए हैं, जो की पार्टी के मूल सिद्धांत के खिलाफ हैं । जब भाजपा में प्रधानमंत्री मोदी जी ने ऐसा नहीं करने या इससे बचने की सलाह पार्टी को दी थी । तब भी रतलाम भाजपा ने प्रधानमंत्री मोदी की बात को वैसे ही अनसुना कर दिया जैसे घर में किसी वृद्ध की बातो को बच्चे नज़रंदाज़ कर देते है । मंडल अध्यक्ष हो या किसी विंग के उपाध्यक्ष सब के घरो में रतलाम भाजपा ने टिकिट भिजवा दिए गए हैं ।
पार्टी ने इसबार जिन लोगो को टिकिट दिया हैं उनमे 2 -2 बार हारने वाले उम्मीदवार भी हैं जिन्हें फिर से टिकिट देकर रतलाम भाजपा ये साबित कर दिया हैं की सिर्फ अपने समर्थको को खुश रखना हैं । भाजपा का नफा नुक्सान ज्यादा मायने नही रखता । रतलाम भाजपा इस बार टिकिट वितरण को लेकर चर्चो में बनी हैं । इस बार भाजपा के जीत का अंतर कम हो सकता हैं या उन्हें कड़ी टक्कर मिल सकती हैं. योग्य उम्मीदवार न मिलने से लोगो में जो असंतोष हैं, आगे वो हो सकता हैं विरोध में बदल जाये ।
नोट : उपरोक्त विश्लेषण में लोगो की राय को संकलित कर के प्रकाशित किया गया हैं. ये प्रकाशक की निजी राय नही हैं