इस वर्ष दीपावली को लेकर हर जनमानस के मन मे संशय है , कि दीपावली कब है। रत्नपुरी विद्वत परिषद के समस्त विप्रगणों ने लिया ये निर्णय
रतलाम/इंडियामिक्स इस वर्ष पूरे देश में दीपावली को लेकर संशय की स्थिति बन रही है, जहां कुछ विद्वान दीपावली 31 अक्टूबर की बता रहे है तो कुछ 1 नवम्बर की, जिससे आम जन में यह दुविधा हो रही है, कि वे दीपावली कब मनाये ।
कुछ समय पूर्व उज्जैन के विद्वानों ने बैठक की और उसके कुछ समय पश्चात इंदौर के विद्वानों ने भी ऐसी ही बैठक का आयोजन किया, इसी कडी में आज रतलाम के बड़ा गोपाल मंदिर में रत्नपुरी विद्वत परिषद ने बैठक कर निर्णय लिया कि रतलाम में दीपावली मनाना कब उचित है ।
पं. संजय ओझा ने बताया बैठक में पं. दुर्गाशंकर ओझा, पं. तरुण द्विवेदी, पं. गोपाल चतुर्वेदी, पं. प्रकाश भट्ट, पं. गोविंद जोशी धराड़, पं. योगेश जोशी, पं. श्याम वोरा, पं. गिरिराज शर्मा, पं. नंदकिशोर व्यास, पं. तरुण द्विवेदी, पं. शैलेंद्र जोशी, पं. मयूर शर्मा, पं. दीपक परसाई, पं. मनीष ओझा, पं. महेश ओझा रैण, पं. भूपेंद्र जोशी, पं. हार्दिक शर्मा, पं. नितेश भारद्वाज व रतलाम के शताधिक विप्रो की उपस्थिति रही और शास्त्र संदर्भो से निर्णय लिया कि रतलाम में दीपावली पर्व 31 अक्टूबर 2024 को मनाई जायेगी। जिसमें 1 नवम्बर का दिन रिक्त होगा।
दीपावली पर पंचदिवसात्मक पर्व का बैठक में लिया गया निर्णय
- दि. 29-10-2024 मंगलवार को धनत्रयोदशी पर्व ( धनतेरस )
- दि. 30-10-2024 बुधवार को १४ तिथि यमदीपदान ( नरक चतुर्दशी/ रूप चौदस )
- दि- 31-10-2024 गुरुवार को १४/३० दिपावली व लक्ष्मीपूजन
- दि. 02-11-2024 शनिवार को गोवर्धन पूजा व अन्नकूट पर्व
- दि. 03-11-2024 रविवार को भाईदूज पर्व
यह पंच दिवसात्मक पर्व रतलाम विप्रमण्डल द्वारा निर्णयसिंधु- धर्मसिंधु- मुहूर्त गणपति-राजमार्तण्ड- स्मृत्य सागर व प्राचीन सौर सिद्धांत एवं सर्वमान्य शास्त्र ग्रंथों के आधार पर, साथ ही विशेष दि. 31 अक्टूबर 2024 गुरुवार को महानिशिथकाल मुहूर्त में अमावस तिथि उपलब्ध होने पर दिपावली पर्व का सर्वमान्य निर्णय लिया गया है। जिससे जन-मानस में इस पर्व के लिये जो भ्रान्ति उत्पन्न हुयी है, उसके निवारण के लिये काशी विद्वद परिषद एवं अन्य मान्य विद्वद गण तथा धर्माचार्य के द्वारा भी यही शास्त्र सम्मत निर्णय लिया गया है ।
बैठक के अंत में पंडित तरुण द्विवेदी ने त्यौहारों पर एकरूपता की बात पर जोर देते हुए सभी उपस्थित गणमान्य विप्रों का आभार व्यक्त किया ।
आखिर 31 अक्टूबर को दीपावली क्यो मनाई जा रही है
दीपावली के संदर्भ में शास्त्र की यह स्पष्ट व्याख्या है, कि कार्तिक कृष्ण अमावस्या दो दिन प्रदोषकालीन होने पर विचारणीय है, कि दीपावली जो कि प्रदोषकाल से लेकर अर्धरात्रि का प्रकाश पर्व है, यह केवल मात्र प्रदोष कालीन पर्व ही नहीं है, अगर यह प्रदोषकाल का ही पर्व होता तो रात्रि में जनता जनार्दन स्थिर सिंह लग्न में पूजा क्यों करती? दुर्गा सप्तशती में उल्लेखित ०४ महारात्रियों में यह संपूर्ण कालरात्री प्रकाश पर्व है, इस महापर्व को प्रदोष काल तक मर्यादित कर देना कहां का पांडित्य हैं? 1 नवंबर की रात्रि में अमावस्या के रजनीकाल में यदि अमावस्या एक घटी भी विद्यमान रहती तो निश्चित रुप से दीपावली 1 तारीख को ही मनाई जाती, मगर यहां तो 1 नवंबर को अमावस्या तिथि प्रदोष में एक घटी होकर ही समाप्त हो रही है रजनी का इससे संयोग ही नहीं हुआ। दीपावली को नाक्षत्रिक परिप्रेक्ष्य में विचार करने से प्रतीत होता है, कि चित्रा नक्षत्र के अंतिम दो चरण तुला राशि में आते हैं, कार्तिक कृष्ण पक्ष के अंत में आकाश में गतिमान चंद्रमा चित्रा नक्षत्र के तीसरे चरण अर्थात तुला राशि में जब प्रवेश करता है तत्समय सूर्य भी इसी नक्षत्र में चंद्रमा से सम सूत्र होता है तब दीपावली महोत्सव पृथ्वी पर सुसंपन्न होता है, चंद्रमा के चित्रा नक्षत्र के तीसरे चरण में प्रवेश करते ही कालरात्रि युक्त अमावस्या में रजोगुण प्रदान करने वाली महालक्ष्मी जी का शरद् ऋतु में उत्पन्न फलों एवं सामग्री द्वारा पूजन संपन्न होता है। – पंडित तरुण द्विवेदी