परिवार बालक की प्रथम पाठ शाला है जहां माँ प्रथम गुरु है जहां राष्ट्र का भविष्य संस्कारों से पोषित होकर फलता फूलता है। मातापिता द्वारा दिए जाने वाले संस्कारों के कारण ही उनकी संतान योग्य या अयोग्यता को प्राप्त होती है ।
देवास। इंडियामिक्स न्युज जीवन का हर क्षण व अंतिम समय हमें दुख नही वरन सुख की अनुभूति करा दे, व मृत्यु को ही उत्सव बनाने का मार्ग श्रीमद्भागवत जी है कथा के द्वितीय दिवस पर यह कहते हुए आज साध्वी अखिलेश्वरी दीदी मां ने आज द्वितीय स्कंध से महाभारत व राजा परीक्षित प्रसंग सुनाया।
महाभारत प्रसंग सुनाते हुए साध्वी जी कहा कि
हमें त्याग सदैव प्रसन्न रहना सिखाता है तभी तो राजा परीक्षित जी की मृत्यु ने बजाय स्वंय के साथ दुसरो के कल्याण की इच्छा ने मृत्यु को ही उत्सव बना दिया कि भोग की इच्छा नही वरन त्याग हमें सुख देता है।साध्वी जी ने कहा परिवार बालक की प्रथम पाठ शाला है जहां माँ प्रथम गुरु है जहां राष्ट्र का भविष्य संस्कारों से पोषित होकर फलता फूलता है। मातापिता द्वारा दिए जाने वाले संस्कारों के कारण ही उनकी संतान योग्य या अयोग्यता को प्राप्त होती है ।अतः प्रयास करे सन्तानके जन्म के साथ ही अच्छे संस्कार की व्यवहारिक शिक्षा प्रारंभ हो जाए।
महाभारत के प्रसंग का वर्णन करते हुए बताया कि कुंती ने जंगल में बिना किसी सुख व सुविधा के ही केवल श्री कृष्ण भक्ति के विश्वास के साथ पांडवों का पालन पोषण किया । तो साक्षात कृष्णजी उनके मार्गदर्शक बने वही माता गांधारी के पास सभी सुख सुविधाओं के होते हुए भी उसकी संतान योगेश्वर कृष्ण जी को नही समझ पाए व अधर्म का मार्ग चुना ।नगर में व्यापक रूप से आयोजित होने वाली इस कथा के लिए समिति के साथ अन्यभक्त भी खूब उत्साहित है ।