सनातन राष्ट्र में अष्टांग योग की बड़ी महिमा है जिससे हम मन आत्मा शरीर पर नियंत्रण रख पाते है उसी योग से क्रोध को भी जीत जा सकता है,
देवास इंडियामिक्स न्युज हाटपीपल्या नगर में चल रही श्रीमद् भागवत कथा के तृतीय दिवस पर कथावाचक साध्वी श्री अखिलेश्वरी दीदी मां ने बताया क्रोध वह अग्नि है जो स्वयं को जीवित रहते हुए भी जला देती है। और इसका कारण केवल मनुष्य का अभिमान यानी अहंकार है यह कहते हुए कथा के तृतीय दिवस पर साध्वी जी ने दक्ष अभिमान ,शिव सती विवाह के साथ भगवान कपिल मुनि ,देवहूति के अष्टांग योग प्रसंग की महिमा को सुनाया
दीदी मां ने बताया कि व्यक्ति को जो मिलता है उसे महत्व ना देकर जो नही मिला उस पर ज्यादा ध्यान देता है और यही लक्षण अभिमान ,क्रोध के कारण बन जाते है वो स्वयं ही स्वयं के दुखों का कारण बन जाता है , प्रसंग सुनाते हुए बताया कि दक्ष ने अभिमान के कारण भगवान शंकर को यज्ञ में नही बुलाया तो वही देवी सती को इतना क्रोध आया कि उन्हें अग्नि में समर्पित होकर जीवन को समाप्त करना पड़ा । दीदी मां ने कहा कि क्रोध व्यक्ति को विवेकहीन बना देता है क्रोध वह एक ऐसी अग्नि है जो दूसरों को जलाने से पहले स्वयं को भस्म करती है। मन पर नियंत्रण ,धैर्यता सहजता जैसे गुण यदि व्यक्ति में है तो वो उस ज्वाला को स्वयं शांत कर लेगा ।
साध्वी जी ने अष्टांग योग की महिमा बताने वाले भगवान कपिल व देवहूति प्रसंग को सुनाया। उन्होंने कहा कि हमारे सनातन राष्ट्र में अष्टांग योग की बड़ी महिमा है जिससे हम मन आत्मा शरीर पर नियंत्रण रख पाते है उसी योग से क्रोध को भी जीत जा सकता है, और जिसने क्रोध को जित लिया, उसने अपने मन को जित लिया”. मन जितने के बाद मनुष्य विजेता बन जाता है और विजेता ही सफल है, जो सफल है,उसी का जीवन सहज, सरल और सुन्दर है इसलिए साध्वी जी ने कहा कि हम दैनिक जीवन में योग द्वारा मन पर नियंत्रण ,धैर्यता ,सहजता जैसे गुणों को प्राप्त कर इस जीवन को सुंदर शांत बनाए अर्थात मन को इधर-उधर भटकने ना देकर , केवल एक ही वस्तु में स्थिर रखना ही योग है