खंडवा जिले की मान्धाता विधानसभा में भाजपा के उम्मीदवार नारायण सिंह पटेल तथा कांग्रेस के उम्मीदवार उत्तमपाल सिंह पूरणी के बीच रोचक चुनावी मुकाबला देखने को मिल सकता है. इस सीट की वर्तमान राजनितिक स्थिति को समझने के लिए पढ़िए – मान्धाता विधानसभा का संक्षिप्त राजनितिक विश्लेषण
खंडवा जिले की एक मात्र सामान्य सीट मान्धाता पर होने वाला उपचुनाव रोचक रहेगा, यहाँ पर अरुण यादव समर्थक नारायण पटेल के भाजपा में जाने के बाद चुनाव होने जा रहें हैं, यहाँ अब भाजपा की ओर से चुनाव लड़ने जा रहें पटेल का इनका सामना करेंगे पूर्व विधायक राजनारायण सिंह पूर्णि के पुत्र उत्तमपाल सिंह. इस चुनाव में बसपा की तरफ से जितेन्द्र वाशिंदे चुनाव लड़ेंगे लेकिन इनकी उम्मीदवारी का यहाँ कोई विशेष महत्व नहीं हैं. यहाँ मुख्य मुकाबला भाजपा व कांग्रेस के बीच ही होने जा रहा है.यह सीट 2008 से पहले निमाड़ खेडी के नाम से जानी जाती थी, जिसका निमाड़ के राजनितिक इतिहास में बड़ा महत्व रहा है. आइये अब हम इस सीट के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा करतें हैं.
सीट का संक्षिप्त राजनितिक इतिहास
यह सीट पारंपरिक रूप से भाजपा की सीट मानी जाती है। 1977 के बाद यहाँ हुये 10 मुख्य विधानसभा चुनावों में यहाँ से 6 बार भाजपा व 4 बार कांग्रेस अपना विधायक विधानसभा में भेजने में सफल हो पाई है। भाजपा व जनता पार्टी की ओर से रघुराज सिंह तोमर 4 बार व लोकेंद्र सिंह तोमर 2 बार विधायक रहें हैं। कांग्रेस की ओर से राजनारायण सिंह पूर्णी 3 बार तथा नारायण सिंह पटेल 1 बार, पिछले चुनावों में विधायक चुने गये हैं। वस्तुतः ओम्कारेश्वर जैसे धार्मिक स्थान के होने व मुख्य निमाड़ क्षेत्र के रूप में जाने-जाने की वजह से यहाँ संघ व सेवाभारती का अपना नेटवर्क है जो हर चुनाव में भाजपा की सहायता करता है, यही कारण है कि यहाँ भाजपा का प्रभाव रहता है.
सीट पर बन रहे जातीय व अन्य समीकरण
कुल 1.96 लाख मतदाताओं वाली इस विधानसभा में सबसे बड़ा मतदाता समूह आदिवासी समाज का है जिसकी कुल संख्या लगभग 73 हजार है। जिनमें गोंड, भील व भिलाला समाज के मतदाता शामिल है।
यहां लगभग 50 हजार मतदाता ओबीसी समाज के हैं, जिसमें सर्वाधिक लगभग 27 हजार मतदाता गुर्जर समुदाय के हैं। लगभग 10 हजार बंजारा व 6 हजार यादव समुदाय से हैं।
यहां लगभग 35 हजार मत सामान्य वर्ग के हैं, जिसमें लगभग 20 हजार राजपूत, 6 हजार ब्राह्मण व 4 हजार बनिया समाज से हैं। SC वर्ग के कुल मतदाताओं की संख्या यहाँ 20 हजार के आसपास हैं.
जातिगत रूप से जटिल इस विधानसभा में शुरु से ही चुनावों में राजपूत उम्मीदवार को जीतने के लिये जरूरी माना जाता है, यही कारण है की नारायण पटेल से पहले के सभी विधायक इसी जाति से आतें हैं. 2008 के बाद जीत-हार, राजपूत तथा गुर्जर समाज के मध्य संतुलन के आधार पर तय होने लगी, 2018 में चुनाव जीत कर नारायण पटेल पहले गुर्जर विधायक बनने में कामयाब भी रहें।
यहां की राजनीति में राजपूत मतों के विरुद्ध ओबीसी व आदिवासी मतों को एक कर कांग्रेस ने पिछला चुनाव मुश्किल से मात्र 1336 वोटों से जीता था। इस बार भाजपा को इसी रणनीति पर चलना पड़ेगा। भाजपा के सामने पिछली बार नारायण पटेल को मिले गुर्जर, यादव, बंजारा व आदिवासी मतों को इस बार अपने पाले में लाना चुनौती होगी।
विधानसभा की वर्तमान राजनीतिक स्थिति की
विधानसभा की वर्तमान राजनीतिक स्थिति दोनों दलों के लिये मुश्किल हैं। यही कारण है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान यहाँ स्वयं सक्रिय हैं। सांसद नन्द कुमार चौहान भाजपा प्रत्याशी नारायण पटेल के साथ दिख रहें हैं।
कांग्रेस ने भी मुश्किल को समझते हुये शुरू से ही समझदार मूव खेला और विधानसभा के दिग्गज राजपूत नेता राजनारायण सिंह पूर्णी के पुत्र उत्तमपाल सिंह पूर्णी को टिकट दिया है। राजपूत मत अगर कांग्रेस के पक्ष में गोलबंद हो गये तो वो भाजपा को यहाँ हरा सकती है। उत्तमपाल कि उम्मीदवारी का मुख्य लक्ष्य भी यही दिख रहा है। यहाँ करणी सेना की राजनीति भी पूर्णी परिवार के इर्दगिर्द रहती है, जिसका यहाँ के राजपूत समाज पर भरपूर प्रभाव है। इसकी वजह से उत्तमपाल के पक्ष में राजपूत मतों के पोलराइजेशन की सम्भावना बनती है। जिससे कांग्रेस को लाभ होने की सम्भावना है।
यहाँ के आदिवासी मतों पर भाजपा का प्रभाव है, यही कारण है कि हर चुनाव में भाजपा जीत पाती है, लेकिन वर्तमान स्थिति में हाथरस कांड, जयस के बढ़ते प्रभाव के कारण भाजपा को थोड़ी समस्या हो सकती है। भाजपा के सामने यहां चुनौती राजपूत व बंजारा समाज के मतों को अपने पक्ष में बरकरार रखने की भी हैं। बंजारा समाज के मतों का बड़ा हिस्सा पिछले विधानसभा चुनावों में ही भाजपा के हाथों से निकल चुका है और राजपूत समाज के मतों का एक बड़ा हिस्सा इस बार हाथ से निकल सकता है।
यहां भाजपा के उम्मीदवार नारायणसिंह पटेल की छवि भी भाजपा के सामने चुनौती के समान हैं. आम जनता विशेषकर गैर गुर्जर आदिवासी, SC व बंजारा मतदाताओं के मध्य इनकी एक अविश्वसनीय छवि का निर्माण हुआ है, जो की भाजपा के लिये सबसे बड़ी मुश्किल खड़ी कर रहा है. यहाँ भाजपा के स्थापित राजपूत नेताओं विशेषकर नरेंद्र सिंह तोमर, जिन्होंने इनके विरुद्ध पिछला चुनाव लड़ा था का विरोध भी नारायण के लिए मुश्किल खड़ा कर रहा है, इसके अलावा भी मुंदी, पुनासा व ओम्कारेश्वर के कई स्थानीय भाजपा पदाधिकारी नाराज बताये जा रहें है, यही कारण हैं की यहाँ भाजपा सांसद नंदकुमार चौहान सक्रीय है व कांग्रेस उत्साहित हैं.
उत्तमपाल सिंह की उम्मीदवारी से कांग्रेस को बल तो मिलेगा लेकिन इससे कांग्रेस के सामने मुश्किल भी खड़ी हो रही है, वो है गैर राजपूत विशेषकर आदिवासी व OBC वर्ग की इनके पिता राजनारायण सिंह से नाराजगी. राजनारायण सिंह के जिस 4 दशकों के अनुभव का कांग्रेस का सहारा है, उसी राजनितिक करियर ने इन दो प्रमुख मतदाता समुदायों की इस स्थाई नाराजगी का श्राप भी इन्हें दिया है. जिसकी रोचक कहानी है, जो किसी अन्य लेख में आपसे साझा करूँगा. स्थानीय भाजपा अगर इसका उपयोग विधानसभा में समझदारी से करे तो गुर्जर समाज के साथ बंजारा व आदिवासी तथा SC वर्ग के एक बड़े मत वर्ग को अपने पाले में कर सकती हैं.
विधानसभा की वर्तमान राजनितिक स्थिति को देख कर यह कहा जा सकता है की अगर यहाँ भाजपा व कांग्रेस के रणनीतिकार समझदारी से चुनाव लड़ें तो पिछले चुनावों जैसा मुकाबला देखने को मिल सकता है. यहाँ कांग्रेस मात्र राजनारायण सिंह व अरुण यादव के भरोसे रही तो भाजपा को जीतने में आसानी हो सकती है.
विधानसभा में प्रभावी प्रमुख मुद्दे
विधानसभा विकसित व विभिन्न संसाधनों से सम्पन्न है. यहाँ ओम्कारेश्वर व हन्वंतिया जैसे पर्यटन के केंद्र हैं, इंदिरा सागर, ओम्कारेश्वर जैसे बहुद्देशीय परियोजना है, सिंगाजी सुपर क्रिटिकल पावर प्लांट है, लेकिन इस विधानसभा में चुनौतियों की भी भरमार है. यहाँ आज भी आदिवासी क्षेत्रों में सडक सम्पर्क व स्वास्थ्य की बेसिक सुविधा का कई जगहों पर आभाव हैं. NHDC व सिंगाजी प्लांट में स्थानीय लोगों को कम रोजगार मिलने की भी क्षेत्र में नाराजगी हैं. बेरोजगारी यहाँ आज भी आदिवासी क्षेत्रों में बड़ा मुद्दा है, बड़ी संख्या में लोग रोजगार के लिए महाराष्ट्र व इंदौर आदि जात्ते हैं.
यहाँ किसान कर्ज माफ़ी को लेकर मिश्रित माहौल है, विधानसभा के कुछ हिस्सों में इसका कांग्रेस को जरूर लाभ मिलेगा लेकिन यह कोई विशेष नहीं हैं. यहाँ के किसान फसल बीमा योजना की राशि कम मिलने व बाढ़ के कारण नष्ट हुई फसल का मुआवजा अभी तक नहीं मिलने से थोड़ी नाराजगी अवश्य है. लेकिन इससे भाजपा को कोई बड़ा नुकसान होता नहीं दिख रहा.
यहाँ इंदिरा सागर, ओम्कारेश्वर बाँध व सरदार सरोवर योजना के कारण नर्मदा के किनारे निर्मित नए डूब क्षेत्रों में विस्थापन व पुनर्वास के साथ सम्पर्क एक समस्या है. कई क्षेत्रों में जलभराव तो कई में अभी तक उचित मुआवजा न मिलने की खबरे आती हैं. यही कारण है की मेधा पाटकर के नेतृत्व में नर्मदा बचाओ आन्दोलन यहाँ सक्रीय है.
यह समस्या कैसी है इस उदाहरण से समझिये – इंदिरा सागर के कारण बलडी-किलौदा गांवों का विस्थापन हुआ तो किल्लोद गांव से ब्लाक मुख्यालय की दुरी 15-20 किमी हो गई, जबकि पामाखेडी, नन्धाना आदि 5 पंचायतों के ग्रामीणों को ब्लाक मुख्यालय आने के लिए 175 किमी की दूरी तय करनी पड़ रही है.
बेरोजगारी, स्थानीय संयंत्रों में स्थानीय को नोकरी, मुआवजा, पुनर्वास व विस्थापन की खामिया आदि ये मुद्दे चुनाव के परिणामों पर काफी असर डालेंगे, साथ ही जातीय, सामाजिक व राजनितिक समीकरणों का भी अपना महत्व होगा, वर्तमान स्थिति को देखते हुए कहा जा सकता है की यहाँ हमे रोचक चुनाव देखने को मिलेगा, हार-जीत का अंतर 5 हजार से कम रह सकता हैं.