अब जनप्रतिनिधियों की दबंगई इस कदर हावी हो रही हैं की थाने के घुसकर पत्रकारों को पिटा जा रहा हैं, रतलाम पुलिस लाचार नज़र आ रही हैं
रतलाम/इंडियामिक्स रतलाम के बड़ावदा थाने में मंगलवार की रात एक पत्रकार पर जानलेवा हमला किया गया . हलाकि दोनों और से मारपीट की खबरे हैं मगर पत्रकार जब पुलिस से शिकायत करने थाने पहुंचा तो आरोपी नगर परिषद् अध्यक्ष और उनके समर्थक भी थाने पहुँच गए और थाने में घुसकर पत्रकार की जमकर पिटाई कर दी. थाने में जमकर लात घूंसे चले और पुलिस लाचार होकर हुड्दंगाईयो को समझाने में लगी रही. जब पुलिस उन्हें समझाने में नाकाम रही तब पुलिस ने हुड्दंगाईयो को थाने से बाहर धकेल दिया. मगर ये लोग थाने के बाहर भी उत्पात मचाते हुए बाहर खड़े वाहनों में जमकर तोड़फोड़ करते रहे. इस बीच पुलिस सिर्फ सायरन बजाती रही. पुलिस की इस कार्यप्रणाली से कई सवाल पैदा होते हैं की आखिर पुलिस पर किसका दबाव था की पुलिस इतनी लाचार हो गयी.
ऐसा कम ही देखने को मिलता हैं जब लोग थाने के अन्दर घुसकर इस प्रकार मारपीट करे और पुलिस इतनी बेबस नज़र आये. ये हमें नब्बे के दशक में उत्तरप्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में देखने को मिलता था जहाँ नेता और बाहुबली इस तरह से अपना आतंक कायम रखते थे. मगर मध्यप्रदेश में ऐसा कम ही देखने और सुनने मिलता हैं. रतलाम पुलिस की इस से ज्यादा किरकिरी इससे पहले नहीं हुई होगी.
एक पत्रकार के साथ थाने में ऐसा होते हुए भी इससे पहले रतलाम में शायद ही किसी ने देखा हो. रतलाम जिले में अगर एक पत्रकार पुलिस स्टेशन में सुरक्षित नही हैं तो अन्य जगह की बात ही क्या. लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ अब इतना कमजोर हो गया हैं की आज एक पत्रकार को कोई नेता इस तरह थाने में घुसकर मार सकता हैं. सवाल सिर्फ नेताओ का नहीं हैं कटघरे में आज पुलिस और सामान्य प्रशासन भी हैं. जो प्रदेश में कानून व्यवस्थाओ को दुरुस्त करने के बड़े बड़े दावे करता हैं, मगर धरातल पर जब ऐसी घटनाये देखने को मिलती हैं तो उन दावो की पोल खुल जाती हैं.
नगर परिषद् अध्यक्ष कल्पना कुमावत खुद थाने में घुसकर हंगामा करती रही . और पुलिस तमाशा देखती रही. हलाकि दोनों और से मारपीट के आरोप लगे जिनकी जाँच पुलिस करने का आश्वासन दे रही हैं. खैर आपसी झगड़ो से इंकार नहीं हैं मगर पुलिस स्टेशन में इस तरह के हादसे पुलिस की कमजोरी को उजागर करते हैं और लोगो का पुलिस सुरक्षा पर विश्वास भी डगमगाता हैं.