शहीद कन्हैया के अंतिम दर्शन को उमड़ पड़ा जनसैलाब, हर एक ने नम आँखों से दी रतलाम के लाल को विदाई, इन सब के बीच शहीद के पार्थिव शरीर पर जमकर हुई राजनीति, इस भीड़ का जवाबदार कौन? प्रशासन या नेता या जनता?
रतलाम/इंडियामिक्स : रतलाम से कुछ दूरी पर स्थित गुणावद गाँव में आज माहौल कुछ ओर ही था। देश भक्ति के तराने, भारत माता की जय, वन्देमातरम जैसे नारो से चारो दिशाएं गूँज रही थी। हजारों की संख्या में लोग अपनी माटी के लाल सिक्किम में शहीद हुए कन्हैया लाल जाट को श्रद्धांजलि देने उमड़ पड़े। पूरे नज़ारे ने यह भी साबित कर दिया की कोरोना से भी बड़ी यहाँ के लोगो की देशभक्ति है। पूरे सैन्य सम्मान के साथ शहीद को अंतिम विदाई दी गयी। मुख्यमंत्री नहीं आये उनके स्थान पर जिले के प्रभारी व शिक्षा मंत्री मोहन यादव आये साथ ही कलेक्टर कुमार पुरुषोत्तम, एसपी गौरव तिवारी व भाजपा, कांग्रेस के नेता भी मौजूद रहे। आपको यह भी बता दे की शहीद कन्हैया के शव को रतलाम लाने के पीछे काफी खींचतान भी हुई और 3 दिन तक इस पर जमकर राजनीति भी हुई।
शहीद के अंतिम संस्कार की तैयारियां कल शव आने के बाद से शुरू कर दी गयी थी। मगर इस कोरोना महामारी में जहाँ सभी को घरो में रहने की हिदायत दी जा रही है वहीं आज प्रशासन का तंत्र फेल होता नज़र आया। हजारों की संख्या में आसपास से लोग वहाँ शहीद के अंतिम दर्शन के लिए पहुँच जाते है जिन्हें प्रशासन रोकने में नाकामयाब हुआ। अब बस यही डर है की कहीं यह गाँव गुणावद कोरोना का हॉटस्पॉट नहीं बन जाए।
आम जनता जो कि स्वयं कोरोना से इतनी त्रस्त थी कि आये दिन प्रशासन पर उंगलियाँ उठा रही थी वह भी ऐसी लापरवाही करने में पीछे नहीं रही। इतनी भीड़ का शहीद के अंतिम संस्कार में जुट जाना कहा तक सही है। यहाँ लोगो ने भी अपनी जान हथेली पर रख कर आना स्वीकार कर लिया। एक प्रश्न काफी गम्भीर उठता है की क्या प्रशासन के इंतजाम नाकाफ़ी थे? प्रशासन के खुफिया इनपुट इतने शसक्त नहीं थे की वह यह मामूली सी जानकारी रख पाए की देश मे कहीं भी सेना का जवान शहीद होता है तो क्या स्थिति निर्मित होती है? क्या इस भीड़ को जुटने से पहले ही रोका नहीं जा सकता था?
हालांकि कोरोना में अभी रतलाम लगातार रिकवरी कर रहा है। ऐसे में अब अगर कोरोना संक्रमितो की संख्या बढ़ती है तो इसका जवाबदेह कौन होगा?