राष्ट्र व राष्ट्र की पौराणिक, सांस्कृतिक सम्पदा के संरक्षण का दावा करने वाली भाजपा सरकार के केंद्र व राज्य में सत्ता में होने। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, भाजपा राष्ट्रीय महासचिव कैलास विजयवर्गीय, केंद्रीय पर्यटन-संस्कृति मंत्री व मप्र से सांसद प्रहलाद सिंह पटेल तथा स्थानीय पर्यटन मंत्री ऊषा ठाकुर द्वारा लगातार स्थानीय धरोहरों, थातियों के संरक्षण की अपील व दावों के बीच, ऐतिहासिक धार जिले की धरमपुरी तहसील में नर्मदा के मध्य स्थित इस पौराणिक महत्व वाले ऐतिहासिक स्थल का लगातार हो रहा क्षरण, राज्य सरकार की गंभीरता पर प्रश्न चिन्ह खड़े करता है।
मध्यप्रदेश, भारत के दिल में बसा वो राज्य है जो भारत के इतिहास, संस्कृति, भूगोल व समाज के प्राचीनतम स्रोतों को आज भी सहेजे हुआ है। नर्मदा नदी घाटी क्षेत्र में भारत की संस्कृति व समाज को समझने में सहायता करने वाले अनेक पौराणिक, ऐतिहासिक स्थल आज भी जीवंत हैं। विंध्य व सतपुड़ा की गोद में आज भी धरा का प्रचीनतम आदिम समुदाय, आदिवासी बंधु अपनी सभ्यता व संस्कृति के वैभव को अक्षुण्य रखे हुये, प्रसन्नता से रह रहें हैं। मालवा, निमाड़, चम्बल, विंध्य, बुंदेलखंड व कौशल के रूप में देखने पर प्रदेश की ऐतिहासिक व सांस्कृतिक समृद्धता का भान होता है।
हैहेय, चेदी, पांडव, परमार, प्रतिहार, चालुक्य, चंदेल, कलचुरी, मराठा व गोंड शासकों द्वारा प्रमुखतः शासित यह प्रदेश भारत के सांस्कृतिक इतिहास में प्रमुख स्थान रखता है। इस धरा पर फलित-पोषित हुए महापुरुषों उज्जैन नरेश राजा विक्रमादित्य (जिनके नाम से हिन्दू विक्रम संवत चलता है), महान राजा भोज ( जिन्होंने धारा नगरी वर्तमान धार, भोपाल झील व प्रारंभिक नगर का निर्माण किया, इनके नाम से ही राजा भोज और गंगू तेली वाली कहावत प्रचलित हैं), जगद्गुरु आदि शंकराचार्य, महिष्मति ( महेश्वर) के राजा सुधन्वा व सहस्रार्जुन आदि का भारत के पौराणिक व सांस्कृतिक इतिहास में विशिष्ट महत्व है।
सांस्कृतिक क ऐतिहासिक रूप से धनी मध्यप्रदेश में भी देश के अन्य राज्यों की भाँति अपनी थातियों के संरक्षण के प्रति पर्याप्त गंभीरता का अभाव है। वो भी तब जब यहां भारतीय संस्कृति व इतिहास के संरक्षण का दावा करने वाली राष्ट्रवादी भाजपा की सरकार लंबे समय से हो। प्रदेश में ऐसे सैकड़ों ऐतिहासिक, पौराणिक, सांस्कृतिक स्थल हैं, जो प्रदेश व देश के इतिहास में अपना विशिष्ट स्थान रखतें हैं। इनमें कई मंदिर हैं, बावड़ियां हैं, नदी टापू हैं, गुहा व पाषाण शिल्प है तो कई ऐतिहासिक महत्व के गढ़, किले व महल हैं। इन्हीं में एक है, ऐतिहासिक रूप से प्रसिद्ध धार जिले की धरमपुरी तहसील में नर्मदा की गोद में स्थित प्राकृतिक नदी द्वीप बेंट तथा अपना वैभव खोता पौराणिक, ऐतिहासिक नगर धरमपुरी।
धरमपुरी में नर्मदा के मध्य स्थित यह नदी द्वीप पौराणिक मान्यता के अनुसार नर्मदा का गर्भ, कटी प्रदेश माना जाता हैं। इस द्वीप पर महान पौराणिक ऋषि दधीचि की समाधि। महाकालेश्वर व ओम्कारेश्वर के समान महात्म्य वाले, स्वयम्भू बिल्वामृतेश्वर महादेव का पौराणिक मंदिर स्थित है, जो जागीरदार के नाम से अंचल में प्रसिद्ध व आस्था के मुख्य केंद्र हैं। बताया जाता है की धरमपुरी नगर की स्थापना स्वयं धर्मराज युधिष्ठिर ने नर्मदा नदी के किनारे राजसूय यज्ञ के उपरांत की थी। शिवरात्रि के समय यहाँ निकलने वाली प्रसिद्ध शाही सवारी, अन्य आयोजनों, तथा मंदिर के विभिन्न प्रकल्पों ने स्थानीय पालिका परिषद को सलाना करोड़ों की आय होती है। किसी समय तक 13 किलोमीटर लंबा रहा यह टापू अब नदी के बहाव तथा बाढ़ के कारण कटते-कटते मात्र 4 किलोमीटर का रह गया है। क्षेत्र की जनता व विभिन्न संगठन इसके संरक्षण हेतु स्वयं जागरूक है, लेकिन सरकारी सहायता के बिना यह सम्भव नहीं है। नगर व जिले के प्रबुद्ध जनों तथा विभिन्न संगठनों ने इसके लिये कई बार प्रदर्शन किये है, लेकिन अभी तक शासन ने कोई ठोस कदम नहीं उठाया है, जो कि दुःखद है।
पिछले कार्यकाल में मुख्यमंत्री रहते शिवराज सिंह चौहान ने जल संसाधन विभाग के माध्यम से द्वीप के कटाव की स्थिति का प्राक्कलन करवाया था, जिसे पूरा करके विभाग ने संबंधित ऑथिरिटी नर्मदा घाटी विकास विभाग को सौंप दिया था। जिसके बाद इस महत्वपूर्ण विषय पर कोई काम नहीं हुआ। लगभग एक दशक से धरमपुरी कस्बे और नदी द्वीप बेंट को जोड़ने के लिये सम्पर्क पुल की मांग की जा रही है, जो कि अभी तक अधूरी है।
तेजी से हो रहे कटाव का कारण
आज से 15 वर्ष पहले तक जब नर्मदा में बाढ़ आती थी तब कुछ ही दिनों में पानी का स्तर कम हो जाता था, लेकिन अब ऐसा नहीं है। सरदार सरोवर बांध परियोजना व निकटवर्ती ओंकारेश्वर बांध के बनने के बाद, बारिश के समय ओम्कारेश्वर बांध द्वारा पानी छोड़ने, सरदार सरोवर के बैक वाटर के यहां जमा होने के कारण अब यहाँ पानी काफी लंबे समय तक जमा रहता है, साथ ही टापू के काफ़ी बड़े तटीय क्षेत्र को प्रभावित करता है। द्वीप के तटों पर लंबे समय तक भारी जलभराव के रहने के कारण, टापू के किनारे लगे पेड़ों को नुकसान हो रहा है और वो तेजी से नष्ट हो रहें हैं। जिसकी वजह से यहां मृदा क्षरण की मात्रा तेजी से बढ़ गई है और द्वीप को नुकसान हो रहा है। अगर ऐसा ही रहा तो शीघ्र ही यहाँ पर स्थित पौराणिक व ऐतिहासिक महत्व के स्थलों को नुकसान हो सकता है।
पौराणिक महत्व वाला है यह द्वीप व धरमपुरी नगर
यह द्वीप महर्षि दधीचि का तपस्या व समाधिस्थल है, यही पर उन्होंने देवासुर-संग्राम के समय इंद्र के वज्र के निर्माण हेतु अपनी अस्थियों का दान दिया था, ऐसी लोक मान्यता है। यहाँ पर महर्षि दधीचि का समाधिस्थल भी निर्मित है।
यहाँ त्रेतायुग में महान राजा रंतिदेव ने राजसूय यज्ञ किया था। यज्ञ में महाबाहु व सुबाहु नामक राक्षसों ने विघ्न डालने का प्रयास किया था, जिसे रोकने ने लिये शिवभक्त रंतिदेव ने अपने आराध्य महादेव शिव का आह्वान किया, जिससे यहां स्थित स्वयंभू बिल्वामृतेश्वर महादेव प्रकट हुये तथा राक्षसों का नाश हुआ। इस यज्ञ में समिधा के रूप में बिल्व व आम्र पत्रों का प्रयोग हुआ अतः यह मंदिर बिल्वामृतेश्वर के नाम से प्रसिद्ध हुआ। आदिकाल से ही राजकुल से सम्बद्ध रहने के कारण इस देवस्थान के पास सैकड़ों बीघा की भू-सम्पत्ति है इसलिये इन्हें स्थानीय क्षेत्र में जागीरदार के नाम से जाना जाता है। स्कंद पुराण के रेवाखण्ड में इस स्थान की महत्ता वर्णित है।
रामायणकाल में यह क्षेत्र अनूप जनपद के अंतर्गत आता था, समीप स्थित महिष्मति ( महेश्वर ) हैहेय वंशी सहस्रार्जुन की राजधानी रही। महाभारत काल में महिष्मति चेदि वंशीय शिशुपाल की राजधानी रही, जिसे हराकर भीमसेन ने इसे पांडवों के अधिपत्य में लिया। यहाँ पर पांडवों ने धर्मराज युधिष्ठिर के नेतृत्व में राजसूय यज्ञ का आयोजन किया था तथा द्वीप के पास धरमपुरी नामक नगर की स्थापना की जो आगे चल कर अवंति महाजनपद के एक प्रमुख नगर के रूप में विकसित हुआ, परमार काल में इसका वैभव अपने शीर्ष पर रहा, मुगल शासन तक निमाड़ प्रान्त के प्रमुख नगर के रूप स्थापित रहा। वर्तमान में भी लघु रूप में अपने इतिहास व वैभव के अवशेषों को संजोये खड़ा है।
धरमपुरी में हैं, पर्यटन का बहुत बड़ा अवसर
देश के सबसे पुराने राजमार्गों में से एक, दिल्ली – मुम्बई राजमार्ग ( NH 3 ) पर बसे खलघाट से यह नगर मात्र 10 किलोमीटर की दूरी पर नर्मदा के किनारे स्थित है। नजदीकी रेलवे जंक्शन और एयरपोर्ट इंदौर यहाँ से मात्र 100 किलोमीटर की दूरी पर है. महाजनपद कालीन इस नगर के कई भग्नावशेष आज भी दृष्टिगोचर होतें हैं, प्राचीन किले के अवशेष, नगर के 4 प्रमुख द्वारों में से 3 के ध्वंशावशेष, अनेक पुराने मन्दिर, खुजावां गांव ( प्रसिद्ध रानी-रूपमती यहीं की थी ) आज भी यहाँ अपना पुरातन वैभव बिखेर रहें है। प्रसिद्ध नर्मदा नदी द्वीप बेंट के रूप में धरमपुरी का प्राकृतिक वैभव व बिल्वामृतेश्वर का ऐतिहासिक व पौराणिक महत्व इसको मप्र पर्यटन के मानचित्र पर प्रमुख रूप से उद्भासित करता है।
धरमपुरी में नर्मदा के मध्य लगभग 4 किलोमीटर व्यास वाला नदी द्वीप भव्य प्राकृतिक संपदा का धनी है, यहां हजारों बिल्व, ईमली, बेर, नीम आदि के हजारों पेड़ हैं। सावन व भादों के महीने में तो यहां का प्राकृतिक सौंदर्य साक्षात नन्दन वन का अनुभव करवाता है। पूरा टापू हरियाली की चादर लहराता हुआ माँ नर्मदा की कमर पर सुन्दर कमरबंद के समान प्रतीत होता है। इस समय टापू पर विचरण करने वाले मयूर, कोयल आदि अन्य पक्षियों की चहचाहट से यहाँ का वातावरण और सुरम्य हो जाता है, जिसका आनंद लेने हजारों की मात्रा में प्रकृति प्रेमी यहाँ आतें हैं। भगवान बिल्वामृतेश्वर के भक्त यहाँ बारहों मास आतें हैं, सावन व भादों के महीने में यह संख्या हजारों में पंहुच जाती है। धरमपुरी से 25 किलोमीटर दूर प्रसिद्ध मांडवगढ़ है तथा 30 किलोमीटर दूर पौराणिक नगर महेश्वर स्थित है, आसपास 20 किलोमीटर में अनेक ऐतिहासिक महत्व के मंदिर आदि स्थापत्य है। ऐसे में इस नदी द्वीप को संरक्षित करने के साथ धरमपुरी नगर व आसपास के ऐतिहासिक स्थलों को संरक्षित करना राज्य सरकार व पर्यटन विभाग का दायित्व है।
इंदिरा सागर बांध ( पुनासा ) के निर्माण के बाद उभरे हनवंतिया आदि नवीन टापुओं को संरक्षित करने व पर्यटन मानचित्र पर लाने में मशगूल शिवराज सिंह चौहान की सरकार अगर धरमपुरी नगर तथा बेंट टापू के संरक्षण पर ध्यान केंद्रित करें तो पर्यटन के क्षेत्र में एक शानदार सफल प्रयास किया जा सकता है, इसके साथ ही पर्यावरण व पारिस्थितिकीय संरक्षण का कार्य भी होगा। महेश्वर, धरमपुरी व मांडव को जोड़ कर एक नया पर्यटन सर्किट विकसित किया जा सकता है, जिससे इन तीनों जगहों की संभावनाओं का एकसाथ दोहन किया जा सकता है।