कोरोना से उपजी जटिलताओं के बीच मप्र में शीघ्र 27 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होंगे, बसपा के बाद कल कांग्रेस ने भी अपने पंद्रह उम्मीदवारों की सूची जारी कर दी. ये चुनाव राज्य में सरकार के भविष्य का निर्धारण करेंगे अतः इनकी चर्चा भी आवश्यक है.
संपादकीय / इंडियामिक्स न्यूज़ देश में कोरोना के बढ़ते संकट, अर्थव्यवस्था की बेहाली और बेरोजगारी की मार के बीच देश के दिल मध्यप्रदेश में चुनावी बयार बह रही है। ज्योतिरादित्य सिंधिया के अपने समर्थकों के साथ पाला बदलने, 2 विधायकों की असमय मृत्यु तथा अन्य नाराज कांग्रेस व निर्दलीय विधायकों के भाजपा में शामिल होने के बाद प्रदेश में आगामी 90 दिनों में 27 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव हो सकतें हैं, जिसकी तैयारी राज्य चुनाव आयोग और राज्य के प्रमुख राजनीतिक दलों ने विभिन्न स्तर पर करनी प्रारम्भ कर दी है।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, राज्यसभा सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया, प्रदेश भाजपा अध्यक्ष विष्णुदत्त शर्मा तथा अन्य मंत्री-विधायक ग्वालियर-चम्बल सम्भाग में सक्रिय है। उपचुनाव वाली सीटों से लगातार लोकार्पण अथवा भूमिपूजन के समाचार मिल रहें हैं, यह इस बात को दर्शाता है कि सरकारी स्तर पर भाजपा चुनाव को लेकर चिंतित, सजग तथा सक्रिय है। संगठन के स्तर पर भी लगातार विधानसभाओं पर काम हो रहा है, मंडल व जिला स्तर पर विभिन्न बैठकों के समाचार मिल रहें हैं, लेकिन संगठन के स्तर पर भाजपा के यह प्रयास काफी नहीं हैं। प्रदेश अध्यक्ष की नयी टीम का गठन अभी तक नहीं होना, कई जिलों में जिला अध्यक्षों की नियुक्ति के बाद जिला कार्यकारिणी की घोषणा नहीं होना, भाजपा युवा मोर्चा का नवीनीकरण नहीं होना तथा हाटपिपल्या, बदनावर, ग्वालियर, ग्वालियर पूर्व, मांधाता, साँची, सांवेर, मुरैना आदि विधानसभाओं में संगठनात्मक स्तर पर भाजपा की कमजोरी आदि कुछ अन्य समस्यायें हैं जिनका निदान भाजपा को संगठनात्मक स्तर पर तुरन्त निकालना चाहिये।
उपचुनावों में भाजपा के चेहरे जनता के सामने हैं लेकिन कांग्रेस के चेहरों को जानने के बारे में प्रदेश के राजनीतिक विश्लेषकों के साथ जनता भी आतुर है। बसपा द्वारा 5 उम्मीदवारों की घोषणा के बाद आज कांग्रेस ने अपने 15 उम्मीदवारों की सूची जारी कर अपने पत्ते खोलने चालू किये हैं। आज घोषित सूची पर नजर डालने पर हम यह पायेंगे कि कांग्रेस ने काफी वैचारिक मेहनत के बाद यह सूची तैयार की है, इसमें कमलनाथ व दिग्विजय सिंह गुट के मध्य पर्याप्त संतुलन साधा गया है। जो की एक अच्छा संकेत है।
कांग्रेस की ओर से घोषित पहले उम्मीदवार है मुरैना जिले की दिमनी विधानसभा से रविन्द्र सिंह तोमर है, जो कि गिरिराज दंडोतिया का मुकाबला करेगा। यहां तोमर की उम्मीदवारी प्रत्याशित थी अतः किसी को आश्चर्य नहीं हुआ है। यहाँ राजपूत वर्ग की प्रमुखता है अतः रविन्द्र सिंह तोमर की उम्मीदवारी एक समझदार मूव मानी जा सकती है। यहां भाजपा को कड़े मुकाबले का सामना करना पड़ेगा। भाजपा को यहाँ शिवमंगल सिंह तोमर गुट के भितरघात का भी सामना करना पड़ सकता है। गिरिराज दंडोतिया का यहाँ भाजपा में आंतरिक रूप से विरोध है, विधानसभा में भी इनका आंशिक विरोध है जो रविन्द्र सिंह तोमर की जातिगत, राजनीतिक तथा सामाजिक पृष्ठभूमि के सामने उन्हें परेशान कर सकता है।
कांग्रेस के दूसरे उम्मीदवार है मुरैना जिले की आरक्षित सीट अम्बाह से सत्यप्रकाश सखवार जो कि बसपा से कांग्रेस में शामिल हुये हैं, 2013 में यहां से विधायक रहें हैं, भाजपा के बंशीलाल जाटव को बड़े अंतर से हराया था। 2008 में इन्होंने भाजपा के वर्तमान सिंधिया समर्थक उम्मीदवार कमलेश जाटव को कड़ी टक्कर दी थी, अतः यह एक मजबूत उम्मीदवार के रूप में माने जा सकतें हैं। बहुसंख्यक SC वर्ग में सखवार बिरादरी के मत सर्वाधिक है अतः कांग्रेस के चयन उचित माना जा सकता है। बसपा ने यहां भानुप्रताप सिंह सखवार को अपना उम्मीदवार घोषित किया है, इनकी उम्मीदवारी से भाजपा के मुकाबले सत्यप्रकाश सखवार को अधिक नुकसान की संभावना है।
कांग्रेस के तीसरे उम्मीदवार हैं भिण्ड की आरक्षित गोहद विधानसभा से मेवाराम जाटव। मेवाराम जाटव अनुभवी नेता है, संजू जाटव के कांग्रेस में आने के बाद पार्टी से नाराज थें, दिग्विजय सिंह के समर्थक हैं ऐसे में कांग्रेस ने यहाँ उचित प्रत्याशी चुना है। संजू जाटव की उम्मीदवारी से कांग्रेस को स्थानीय संगठन के स्तर पर समस्या हो सकती थी ऐसे में जाटव का चयन महत्व रखता है। बसपा ने यहां से जसवंत पटवारी को अपना उम्मीदवार बनाया है जिसकी वजह से इन्हें आंशिक नुकसान हो सकता है।
भाजपा के संभावित उम्मीदवार रणवीर जाटव के मुकाबले मेवाराम जाटव की उम्मीदवारी विधानसभा के जातिगत समीकरणों पर भी फीट बैठती है। मेवाराम जाटव दिग्विजय सिंह व पुर्व मंत्री डॉ. गोविंद सिंह के समर्थक है, जिससे उनको स्थानीय कांग्रेस सन्गठन का सहयोग भी मिलेगा। भाजपा को यहां लालसिंह आर्य के असंतुष्ट कायकर्ताओं के भितरघात का सामना करना पड़ सकता है, जिसकी वजह से यहां भाजपा का चुनावी रण आसान नहीं हैं।
कांग्रेस के चौथे उम्मीदवार हैं ग्वालियर विधानसभा सीट से सुनील शर्मा, बालेंदु शुक्ला के साथ इनका नाम उम्मीदवारी में शामिल था। शर्मा कांग्रेस अध्यक्ष के नजदीकी माने जातें हैं जबकि दिग्विजय सिंह खेमें से इनका मनमुटाव माना जाता है। सुनील शर्मा यहां सिंधिया समर्थक मन्त्री प्रद्युम्न सिंह तोमर का मुकाबला करेंगे।
सुनील शर्मा पिछले दो चुनावों में अपनी दावेदारी जता चुके हैं लेकिन प्रद्युम्न सिंह तोमर के रहते इन्हें टिकट नहीं मिल रहा था। अब तोमर के जाने के बाद विधानसभा में ब्राह्मण मतों की संख्या द्वितीय सर्वाधिक होने के कारण कांग्रेस की यह उम्मीदवारी जातिगत समीकरणों के अनुरूप है। भाजपा को यहाँ जयभान सिंह पवैया तथा प्रभात झा समर्थकों से भितरघात का सामना भी करना पड़ सकता है, ऐसे में सुनील शर्मा और प्रद्युम्न सिंह तोमर के बीच कड़ा मुकाबला देखने को मिल सकता है।
कांग्रेस के पांचवे उम्मीदवार हैं ग्वालियर जिले की आरक्षित सीट डबरा से सुरेश राजे। सुरेश राजे पहले भाजपा में थें जिन्हें इमरती देवी ने कांग्रेस में शामिल करवाया था, अब समय का फेर ऐसा है कि राजे इमरती देवी के सामने चुनाव लड़ेंगे। सुरेश राजे 2013 में भाजपा से इमरती देवी के विरुद्ध चुनाव लड़ चुके हैं लेकिन उस समय उन्हें लगभग 25% मतों के बड़े अंतर से हार का सामना करना पड़ा था।
वस्तुतः सुरेश राजे इमरती देवी के मुकाबले उपयुक्त उम्मीदवार नहीं है, इनकी जगह अगर कांग्रेस सत्यपरकाशी परसेडिया को चुनाव लड़वाती तो अच्छा मुकाबला देखने को मिल सकता था। इस विधानसभा में कांग्रेस इमरती देवी के सामाजिक व राजनीतिक रसूख के कारण ही जीत पाती थी, जो कि अब मुश्किल होगा। यहां वृंदावन कोरी, गुंजा जाटव, DD बंसल और सत्यपरकाशी परसेडिया की नाराजगी का लाभ भाजपा अगर उठाती है तो कांग्रेस उम्मीदवार को बड़ा नुकसान हो सकता है। यहां से वर्तमान गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा 2 बार विधायक रह चुके है, इस नाते विधानसभा में उनका व्यक्तिगत प्रभाव भी है जिसका लाभ निःसन्देह इमरती देवी को मिलेगा, बसपा ने यहां संतोष गौड़ को अपना उम्मीदवार बनाया है, ऐसे में यह कहा जा सकता है कि कांग्रेस का घोषित उम्मीदवार यहां मप्र शासन की मंत्री इमरती देवी के मुकाबले कमजोर है।
कांग्रेस के छठे उम्मीदवार है दत्तिया जिले की भांडेर विधानसभा से क्षेत्र के स्थापित दलित नेता फूल सिंह बरैया जो सम्भावित भाजपा उम्मीदवार रक्षा संतराम सरोनिया का मुकाबला करेंगे। बरैया ग्वालियर-चम्बल अंचल के स्थापित दलित नेता है, बरैया 1998 में बसपा से इस सीट पर विधायक रह चुके है, इसके बाद 2003 में निर्दलीय, 2008 में लोक जनशक्ति पार्टी तथा 2013 में बहुजन संघर्ष दल से भी यहां चुनाव लड़ चुके हैं लेकिन असफल रहें हैं। बरैया के माध्यम से कांग्रेस अंचल में दलित वोटों को साधना चाहती है, जिस हेतु इनको टिकट दिया है, राज्यसभा चुनावों में बरैया को द्वितीय वरीयता के उम्मीदवार के रूप में दिग्विजय सिंह के मुकाबले कांग्रेस ने वरीयता दी थी, ऐसे में दलित समाज में भाजपा इसबात को लेकर असंतोष न उत्पन्न कर सके इस लिये भांडेर से इनको चुनाव लड़वाने की संभावना थी, जिसकी घोषणा कर कांग्रेस में इस विरोध को थामने का प्रयास किया है।
फूलसिंह बरैया को यहां कड़े मुकाबले का सामना करना पड़ेगा, रक्षा संतराम सरोनिया यहां एक मजबूत उम्मीदवार है, पिछले चुनाव में इन्होंने 34% के बड़े अंतर से अपने नजदीकी भाजपा के उम्मीदवार को हराया था, ऐसे में स्थानीय स्तर पर भाजपा में इनका विशेष विरोध न होने तथा विधानसभा में मजबूत नरोत्तम मिश्रा खेमे के इन्हें सहयोग मिलने से यह कहा जा सकता है रक्षा संतराम सरोनिया यहां फूलसिंह बरैया को कड़ी टक्कर दे सकती है। फूलसिंह बरैया को दिग्विजय सिंह के समर्थकों का सहयोग मिलेगा यह कहना मुश्किल है, क्योंकि फूलसिंह तथा दिग्विजय सिंह की खींचातानी जगजाहिर है। दिग्विजय सिंह समर्थक व उनकी सरकार में गृहराज्यमंत्री रहें पूर्व सीनियर विधायक महेंद्र बौद्ध इस सीट पर अपनी उम्मीदवारी तय मान रहें थें, ऐसे में अगर उन्होंने चुनाव में असहयोग किया तो फूल सिंह बरैया की मुश्किलें बड़ सकती हैं।
कांग्रेस के सातवें उम्मीदवार हैं शिवपुरी जिले की आरक्षित विधानसभा करेरा से प्रागीलाल जाटव जो चुनाव में सिंधिया समर्थक भाजपा उम्मीदवार जसवंत जाटव का मुकाबला करेंगे। प्रागीलाल जाटव बसपा से 2008, 2013 तथा 2018 में यहां से चुनाव लड़ चुके है, 2008 और 13 में इन्होंने कांग्रेस व भाजपा उम्मीदवारों को कड़ी टक्कर दी थी, दूसरे नम्बर पर रहें, 2018 में इन्हें तीसरे स्थान पर रहना पड़ा। इस विधानसभा में कांग्रेस के पास अपना कोई प्रभावशाली नेता नहीं था, अतः जाटव की उम्मीदवारी एक समझदार कदम मानी जा सकती है। भाजपा व कांग्रेस उम्मीदवार के एक ही जाति से होने के कारण यहां के राजनीतिक समीकरण जटिल हो गये हैं, ऐसे में खटीक बिरादरी के वोटों का रुझान महत्वपूर्ण हो गया है। भाजपा के नेता राजकुमार खटीक, रमेश खटीक आदि के माध्यम से भाजपा खटीक बिरादरी के वोटों को अपने पक्ष में लामबंद कर सकतें हैं, लेकिन यह दोनों जसवंत जाटव के भाजपा में आने के असहज है, जिस स्थिति को दूर किये बिना इस स्थिति का लाभ उठाना मुश्किल है। कांग्रेस नेत्री व पूर्व विधायक शकुंतला खटीक के समर्थक यह मानकर चल रहे थें की इन्हें ही टिकट मिलेगा, ऐसे में भाजपा थोड़ी मेहनत करने पर इनके समर्थकों के असंतोष का लाभ ले सकती है। बसपा ने यहां राजेन्द्र जाटव को अपना उम्मीदवार घोषित किया है, इनकी उम्मीदवारी से भाजपा व कांग्रेस दोनों को नुकसान की संभावना है, काफी हद तक इस विधानसभा का परिणाम बसपा प्रत्याशी के मत निर्धारित कर सकतें हैं।
कांग्रेस के आठवें उम्मीदवार हैं गुना जिले की बामोरी विधानसभा सीट से पूर्व भाजपा नेता व मंत्री कन्हैयालाल अग्रवाल जो यहां सिंधिया समर्थक महेंद्रसिंह सिसोदिया का सामना करेंगे। अग्रवाल ने 2008 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस के महेंद्रसिंह सिसोदिया को हराया था तथा 2013 में इनसे हारे थें। अग्रवाल एक अनुभवी नेता होने के साथ विधानसभा से पूर्ण परिचित हैं, ऐसे में इनको उपयुक्त उम्मीदवार कहा जा सकता है, लेकिन यह नहीं कहा जा सकता कि अग्रवाल चुनाव जीत पायेंगे। अग्रवाल दिग्विजय सिंह के नजदीक है अतः उनको टिकट मिलना किसी को आश्चर्य में नहीं डाल रहा है।
यहां पर चुनाव सीधे महल ( सिंधिया ) व किले ( दिग्विजय सिंह ) के बीच में हो रहा है, दिग्गिराजा उनके पुत्र जयवर्धन सिंह तथा भाई लक्ष्मण सिंह इस सीट पर सक्रिय है, विधानसभा स्तर पर कांग्रेस के प्रयास भी गम्भीर है, यहां पर अग्रवाल को कांग्रेस में विरोध नहीं बल्कि अभूतपूर्व समर्थन मिल रहा है ऐसे में इनको मजबूती मिल रही है। स्थानीय स्तर पर कई भाजपा कार्यकर्ता सिंधिया समर्थकों को ज्यादा महत्व मिलने से भी असहज है, ऐसे में भाजपा को यहां भितरघात का भी बड़ा खतरा है, वस्तुतः इस सीट पर भाजपा और कांग्रेस के बीच कड़ा मुकाबला देखने को मिल सकता है।
कांग्रेस की नवीं उम्मीदवार हैं, आरक्षित अशोकनगर सीट से आशा दोहरे, जो सिंधिया समर्थक जजपाल सिंह जज्जी का मुकाबला करेंगी। कांग्रेस की उम्मीदवार यहां जजपाल सिंह जज्जी के मुकाबले कमजोर है, विधानसभा में जिसप्रकार का प्रबंधन व समर्थन जज्जी के पास है वैसा आशाजी के पास नहीं हैं जो कि मैदानी पृष्ठभूमि पर इन्हें कमजोर करता है। आशा दोहरे को कांग्रेस में त्रिलोक अहिरवार, रमेश तामरे आदि के असहयोग का सामना करना पड़ सकता है, जो इन्हें और कमजोर कर रहा है।
कांग्रेस यहां चुनाव को लेकर गंभीर है, जिलाध्यक्ष हरिसिंह रघुवंशी, वरिष्ठ कांग्रेस नेता दशरथ सिंह सोलंकी, संजय यादव आदि विधानसभा के ग्रामीण क्षेत्रों में लगातार दौरे व बैठके कर के संगठन को साधने की कोशिस कर रहें हैं, लेकिन यह नाकाफी है। क्योंकि सिंधिया व जज्जी के कांग्रेस छोड़ने के बाद यहां पर कांग्रेस को संगठनात्मक स्तर पर बहुत भारी नुकसान हुआ है, जो आशा दोहरे की राह में सबसे बड़ी मुश्किल है। हालांकि भाजपा को यहां पूर्व विधायक लादूराम कोरी व विधायक गोपीलाल जाटव के समर्थकों से भितरघात की संभावना है, लेकिन इसके बाद भी यहां कांग्रेस उम्मीदवार को जिताऊ नहीं कहा जा सकता वर्तमान में जजपाल सिंह जज्जी यहां आशा दोहरे के मुकाबले कही ज्यादा मजबूत हैं।
कांग्रेस के दसवें उम्मीदवार हैं आरक्षित विधानसभा अनूपपुर से विश्वनाथ सिंह कुंजम जो कद्दावर नेता तथा मंत्री बिसाहुलाल साहू का मुकाबला करेंगे। विश्वनाथ सिंह तीन नार खुमहारिया गांव के सरपंच रहें हैं, वर्तमान में जिला पंचायत वार्ड क्रमांक 4 से जिला पंचायत सदस्य हैं, 2018 में भी यह टिकट की दौड़ में थें लेकिन बिसाहुलाल के होते इनका नम्बर नहीं लगा। सच तो ये है कि इस सीट पर कांग्रेस का मतलब बिसाहुलाल थें ऐसे में उनके जाने के बाद कांग्रेस में कोई कद्दावर नेता नहीं रहा। विश्वनाथ सिंह के पास चुनाव लड़ने व प्रबंधन का अनुभव नहीं हैं साथ में स्थानीय संगठन के स्तर पर भी पूरी विधानसभा में इनकी पकड़ नहीं हैं, ऐसे में ये बिसाहुलाल साहु के मुकाबले एक कमजोर उम्मीदवार शामिल होंगे।
विश्वनाथ सिंह को यहाँ स्थानीय स्तर पर विरोध का सामना करना पड़ेगा। ममता सिंह, नर्मदा सिंह, दिव्या सिंह जैसे नेता इनका सहयोग करें इसमें संशय है, इनको भितरघात का सामना कर पड़ सकता है, जो इनको और कमजोर करेगा। बिसाहुलाल सिंह के पास रमेश गर्ग के रूप में एक अनुभवी राजनीतिक मैनेजर है जबकि विश्वनाथ सिंह के पास ऐसा कोई सहयोग नहीं हैं, दबे-छिपे विरोध ऐसा है। ऐसे में इनको चुनाव में मुश्किल होगी। वर्तमान स्थिति में यह कहना गलत नहीं होगा कि अनूपपुर में कांग्रेस को और मजबूत उम्मीदवार चुनना था, विश्वनाथ सिंह वर्तमान स्थितियों में उचित उम्मीदवार नहीं कहे जा सकतें।
कांग्रेस के ग्यारहवें उम्मीदवार हैं रायसेन जिले की आरक्षित विधानसभा सांची से मदनलाल अहिरवार चौधरी जिनको कद्दावर नेता और मंत्री डॉ. प्रभुराम चौधरी का सामना करना है। मदनलाल चौधरी के पास पर्याप्त राजनीतिक अनुभव नहीं हैं, गैरतगंज तहसील के हरदोट गांव के निवासी चौधरी 2000 में मंडी सदस्य रहें हैं, 2005 में सरपंच रहें हैं, 2010 में इनकी पत्नी सरपंच रही हैं, 2015 से ये जिला पंचायत सदस्य हैं। अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत से डॉ प्रभुराम चौधरी के समर्थक रहें मदनलाल वर्तमान में PCC अध्यक्ष के खेमें में हैं लेकिन इन्हें डॉ. प्रभुराम चौधरी के मुकाबले मजबूत उम्मीदवार नहीं माना जा सकता।
सांची विधानसभा में कांग्रेस के पास प्रभुराम चौधरी के मुकाबले कोई अन्य मजबूत उम्मीदवार नहीं था, किरण अहिरवार या डॉ GC गौतम यहां मदनलाल के मुकाबले कांग्रेस के पास अच्छे विकल्प थें, जिनके पास स्तरीय राजनीति का अनुभव भी था। भाजपा की ओर से यहां प्रभुराम चौधरी को पूरा सहयोग मिलेगा इसपर संशय है। शेजवार परिवार के समर्थक भितरघात करेंगे यह इसकी पूर्ण आशंका हैं, स्थानीय भाजपा में चौधरी समर्थक अपना एक समानांतर सन्गठन खड़ा कर रहें हैं जिससे स्थानीय भाजपा के कई पदाधिकारी आंतरिक रूप से रूष्ट हैं। भाजपा ने अगर शीघ्र समाधान नहीं किया तो पूर्व मन्त्री सुरेंद्र पटवा व रामपाल सिंह के समर्थक भी चुनाव में असहयोग कर सकतें हैं। अतः यह कहा जा सकता है कि कांग्रेस के घोषित उम्मीदवार स्थानीय भाजपा के असहयोग से ही डॉ. प्रभुराम चौधरी को हरा सकतें हैं अन्यथा उनके लिये यह बहुत मुश्किल चुनाव है।
कांग्रेस के बारहवें उम्मीदवार हैं आरक्षित आगर विधानसभा से विपिन वानखेड़े जिन्होंने पिछले चुनाव में पूर्व विधायक स्व. मनोहर ऊंटवाल को कड़ी टक्कर दी थी मात्र 1.5% मतों से चुनाव हारे थें। यहां पर कांग्रेस ने मजबूत उम्मीदवार दिया है लेकिन यह प्रत्याशित था। इस विधानसभा में कांग्रेस के पास पवन वर्मा, राजकुमार गौरे, रमेशचन्द्र सूर्यवंशी, कमल जाटव, इंदुबाला बिरलवान आदि के रूप में उम्मीदवारों की श्रृंखला थी जिससे यहां कांग्रेस के पास सर्वश्रेष्ठ उम्मीदवार चयनित करने की सुविधा थी।
विपिन वानखेड़े NSUI के प्रदेशाध्यक्ष रहने के नाते NSUI व युवक कांग्रेस में पॉप्युलर हैं, इनके पास प्रत्येक सेक्टर पर तेजतर्रार युवाओं की टीम है, इनका अपीयरेंस भी अच्छा हैं, चुनाव हारने के बाद भी विधानसभा में सक्रिय हैं। विपिन वानखेड़े को जीतू पटवारी, दिग्विजय सिंह, रामलाल मालवीय, महेश परमार के समर्थकों का सहयोग हैं ऐसे में भाजपा को यहां मजबूत उम्मीदवार देना पड़ेगा।
यह सीट चूंकि भाजपा की पारंपरिक सीट मानी जाती है अतः इसको जितना इन उपचुनावों में भाजपा की प्रतिष्ठा का प्रश्न हैं। भाजपा अगर यहां दिवंगत विधायक के पुत्र मनोज ऊंटवाल को उतारती है तो सन्गठन, सत्ता तथा सहानुभूति के बल पर वो जीत सकतें हैं, इनके अलावा भाजपा के पास सतीश मालवीय, योगेश सामन्ते, रेखा रत्नाकर, चिंतामणि मालवीय के रूप में विकल्प मौजूद हैं जो वानखेड़े को कड़ी टक्कर दे सकतें हैं।
कांग्रेस के तेरहवें उम्मीदवार हैं देवास जिले की हाटपीपल्या विधानसभा सीट से राजवीर सिंह बघेल जो सिंधिया समर्थक भाजपा उम्मीदवार मनोज चौधरी का सामना करेंगे। कांग्रेस ने यहां उपयुक्त उम्मीदवार घोषित किया है, राजवीर सिंह बघेल लंबे समय में राजनीति में हैं, सोनकच्छ नगरपालिका के अध्यक्ष हैं। जिनके पिता राजेन्द्र सिंह बघेल इसी सीट से 7 बार चुनाव लड़ा है तथा 3 बार विधायक रहें हैं। राजवीर सिंह बघेल 2018 में टिकट के उम्मीदवार थें लेकिन सिंधिया समर्थक मनोज चौधरी को टिकट मिला था।
मनोज चौधरी के मुकाबले राजवीर सिंह बघेल मजबूत उम्मीदवार है, इनके पास विधानसभा के प्रत्येक गांव में कार्यकर्ताओं की मजबूत टीम है, स्थानीय कांग्रेस कार्यकर्ता मनोज चौधरी से नाराज है जो गुटबाजी से दूर राजवीर सिंह बघेल के साथ है। मनोज चौधरी के पिता गोवर्धन सिंह चौधरी ने 2008 में निर्दलीय चुनाव लड़ा था जिसकी वजह से कांग्रेस के राजेन्द्र सिंह बघेल भाजपा के दीपक जोशी से मात्र 220 मतों से हारे थें, विधानसभा में कांग्रेस की एकजुटता का कारण यह घटना है जिसकी वजह से स्थानीय कांग्रेस ने मनोज चौधरी को हराना मिशन बनाया हुआ है। मनोज चौधरी को दीपक जोशी के समर्थकों से भितरघात का सामना भी करना पड़ सकता हैं। ऐसे में स्थानीय कांग्रेस की मजबूती, अपने पक्ष में स्थानीय सन्गठन की सद्भावना, विधानसभा के हर गांव से परिचय तथा मजबूत राजनीतिक, समाजिक, आर्थिक बैकग्राउंड राजवीर सिंह बघेल को मनोज चौधरी के मुकाबले मजबूत उम्मीदवार बनाता है।
कांग्रेस के चौदहवें उम्मीदवार हैं बुरहानपुर जिले की आरक्षित विधानसभा नेपानगर से रामकिशन पटेल जो यहां सम्भावित भाजपा उम्मीदवार सुमित्रा कासडेकर का सामना करेंगे। रामकिशन पटेल कांग्रेस की ओर से उपयुक्त चयन है, पटेल विधानसभा से 3 बार चुनाव लड़ चुके हैं, 2 बार कांग्रेस से व एकबार निर्दलीय। अगर सुमित्रा काडसेकर चुनाव लड़ती है तो उनको इनकी उम्मीदवारी से परेशानी हो सकती है। अगर भाजपा यहां पुनः मंजू दादू को उम्मीदवार बनाती है तो रामकिशन पटेल को मुश्किल हो सकती है।
बहरहाल रामकिशन पटेल अनुभवी नेता हैं, इनके पास हर सेक्टर पर अनुभवी कार्यकर्ता है, सुमित्रा कासडेकर के विरोध जो माहौल बन रहा है उसको भुनाने में ये सक्षम है अतः यहां हमें चुनाव में कांटे की टक्कर देखने को मिल सकती है।
कांग्रेस की तरफ से घोषित इस सूची के अंतिम तथा पंद्रहवें उम्मीदवार हैं इंदौर जिले की सांवेर विधानसभा से प्रेमचन्द गुड्डू जो यहां सिंधिया समर्थक मंत्री तुलसी सिलावट का सामना करेंगे। प्रेमचन्द गुड्डू मूलतः कांग्रेसी नेता है जो सिंधिया से नाराजगी के कारण अल्पकाल के लिये भाजपा में आये थें और सिंधिया के कांग्रेस छोड़ते ही कांग्रेस में चले गये। प्रेमचन्द गुड्डू अनुभवी हैं विधायक, सांसद रहें हैं। गुड्डू 1998 में यहां से विधायक रह चुके हैं अतः क्षेत्र से परिचित है। इनके पास यहां प्रत्येक गांव में कार्यकर्ताओं की टीम है।
प्रेमचन्द गुड्डू लगभग 2 महीनों से क्षेत्र में तैयारी कर रहें हैं, अघोषित रूप से इनकी उम्मीदवारी की घोषणा क्षेत्र में हो चुकी थी। स्थानीय कांग्रेस संगठन गुड्डू के साथ सहयोगात्मक रवैया दिखा रहा है, लगातार बैठक लेकर मंडलम और ब्लॉक स्तर पर गुड्डू के समर्थकों को मौका देकर संगठन को दुरुस्त किया जा रहा है। जो इस चुनाव को लेकर प्रेमचन्द गुड्डू और कांग्रेस की गम्भीर तैयारी को दर्शाता है। तुलसी सिलावट को यहां भितरघात की भी सम्भावना है अतः वर्तमान स्थिति में दोनों उम्मीदवारों की स्थिति को देखकर यह कहा जा सकता है कि हमें इस सीट पर कड़ा मुकाबला देखने को मिल सकता है।
कांग्रेस द्वारा घोषित प्रत्याशियों पर इस संक्षिप्त तथ्यात्मक चर्चा के बाद कहा जा सकता है की मप्र के राजनितिक इतिहास के सर्वाधिक चर्चित रहने वाले इस उपचुनाव में कांग्रेस ने अपना पहला कदम काफी समझदारी से बढाया है, लेकिन ये कदम इतने सक्षम नहीं की मुश्किल हल कर सकेंगे, हालाँकि की ये मुश्किल हल करने में मदद करेंगे. इस उम्मीदवार चयन में कांग्रेस ने जो कठोरता व सामंजस्य रखा है अगर बाकी की सूची तथा चुनावों के धरातल पर रहा तो कमलनाथ व दिग्गी राजा के नेतृत्व में कांग्रेस शिवराज तथा महाराज की जोड़ी का कड़ा मुकाबला कर सकती हैं.
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