गणेश प्रतिमा पर पथराव की घटना और उसके बाद पुलिस प्रशासन की कार्यवाही पर सवाल उठ रहे हैं और कल रात रतलाम एसपी राहुल कुमार लोढ़ा का ट्रान्सफर भोपाल ( पुलिस अधीक्षक, रेल ) हो गया
रतलाम/इंडियामिक्स 7 सितम्बर की शाम को एक खबर ने रतलाम में कोतुहल मचा दिया. गणेश चतुर्दशी पर शहर में हर जगह गणेश प्रतिमाओ की स्थापना हो रही थी. अचानक खबर फैली की मोचिपुरा क्षेत्र में गणेश प्रतिमा पर अज्ञात लोगो ने पत्थरबाज़ी की हैं. खबर के बाद हिन्दू संघठन थाना दो बत्ती पर पहुँचाने लगे और पत्थरबाजों पर कार्यवाही की मांग करने लगे. धीरे धीरे भीड़ बढ़ने लगी और पुलिस प्रशासन उन्हें कार्यवाही का आश्वासन देने लगा लेकिन कोई ठोस कार्यवाही का आश्वासन न मिलने पर भीड़ ने पुलिस प्रशासन की इस ढुलमुल रवैये के खिलाफ नारेबाज़ी शुरू कर दी. जब पुलिस को लगा की मामला बढ़ता ही जा रहा हैं तब पुलिस ने अज्ञात लोगो के खिलाफ मामला पंजीबद्ध किया.
मौका मुआइना करने ASP राजेश खाका मौचिपुरा पहुंचे
लगातार भीड़ बढती जा रही थी और पुलिस पर तुरंत कार्यवाही का दबाव भी बन रहा था तब ASP मौका मुआइना करने मौचिपुरा के लिए निकले और उनके पीछे धीरे धीरे भीड़ भी मौचिपुरा क्षेत्र की और जाने लगी. इसी बीच भीड़ बड़ी संख्या में उंकाला रोड की और जाने के लिए मौचिपुरा के रास्ते जाने के लिए निकल गयी. उंकाला रोड के गणपति की प्रतिमा वाही प्रतिमा थी जो मौचिपुरा के रस्ते जा रही थी और पथराव हुआ था.
भीड़ पर पथराव कब हुआ
पुलिस बल ने पहले तो भीड़ को मौचिपुरा में जाने से रोकने का प्रयास किया लेकिन पुलिस इसमें असफल रही. जब भीड़ मौचिपुरा पहुंची तब हालात सामान्य थे लेकिन अचानक अलग अलग जगह से भीड़ पर पत्थरबाज़ी शुरू हो गयी और भीड़ इधर उधर भागना शुरू कर दिया.
पुलिस ने लाठीचार्ज क्यों किया, किस अधिकारी ने आदेश दिए
जब भीड़ पर लगातार पत्थरबाज़ी शुरू हुई तो पुलिस पर भी पत्थर आना शुरू हो गए. पुलिस जब तक कुछ समझ पाती तब तक वहां भगदड़ शुरू हो गयी. पुलिस ने पत्थर फैकने वालो का पता लगाने की जगह भीड़ को खदेड़ने के लिए बल प्रयोग शुरू कर दिया. पुलिस जमकर लाठियां बरसाई. जिसमे कई लोगो के घायल होने की सूचना मिली. आखिर सवाल ये भी हैं की किस अधिकारी के कहने पर लाठीचार्ज किया गया ? रतलाम एसपी, कलेक्टर या ASP… खैर ये मुद्दा जाँच का हैं.
एसपी लोढ़ा की कार्यप्रणाली पर सवाल, जो लोग रात 10 बजे तक फरियादी थे, वे 12 बजे तक अपराधी बना दिए गए
गणेश प्रतिमा पर पत्थरबाज़ी की शिकायत लेकर जो लोग दो बत्ती थाने पर गए थे उनमे से अधिकतर लोगो को पुलिस ने नामजद अपराधी बनाकर उनपर रात को ही कार्यवाही कर उन्हें सुबह जल्दी जेल भी भेज दिया गया. इसमें कमाल की बात ये भी हैं की पुलिस ने इतने कम समय में जाँच भी कर ली और FIR में उन्हें आरोपी बनाकर रातोरात कार्यवाही भी कर दी. जबकि पुलिस को गणेश प्रतिमा पर पत्थरबाज़ी की इससे काफी समय पहले मिल चुकी थी मगर तब पुलिस का कहना था की हम जाँच कर कार्यवाही करेंगे. उस समय तक पुलिस को जाँच के लिए पर्याप्त समय चाहिए था, मगर एक शिकायत के बाद पुलिस ने तुरंत कार्यवाही करते हुए जाँच को कुछ ही पलो में समाप्त कर आरोपियों के खिलाफ FIR दर्ज कर के कार्यवाही भी कर दी कुछ लोगो को पकड़कर जेल भी भेज दिया गया.
अगले दिन सुबह राजनीति सक्रीय हुई
इस घटना के बाद अगले दिन सुबह से ही हिन्दू संगठनो ने इस एक तरफा कार्यवाही का विरोध करना शुरू कर दिया. धीरे धीरे बात भाजपा के जिला इकाई से होती हुई भोपाल पहुच गयी. इस तरह की कार्यवाही की उम्मीद भाजपा की प्रदेश सरकार की नहीं थी या तो उन्हें रात को प्रशासन स्तिथि की सही जानकारी नही दी या प्रदेश सरकार इसे मामूली घटना समझ रही थी. खैर मामला अब एंटी भाजपा न बने इसलिए डैमेज कण्ट्रोल की प्रक्रिया शुरू हो गयी. ये भी पता चला हैं की संघ परिवार इस घटना के काफी नाराज़ हैं. 10 सितम्बर को आनन फानन में इस घटना की जिम्मेदारी तय कर कार्यवाही की रुपरेखा बनानी शुरू हुई.
एसपी राहुल कुमार लोढ़ा की चुक को जिम्मेदार माना गया, कार्यवाही की रूपरेखा
सूत्रों के अनुसार भोपाल में जब घटना की विस्तृत जाँच की गयी तब ही ये साफ़ हो गया था की पुलिस की एक तरफा कार्यवाही से ही समस्त हिन्दू समाज में भाजपा सरकार की छवि ख़राब हो रही हैं. एसपी राहुल कुमार लोढ़ा ने जो भी कदम उठाये वो कहीं न कहीं शक के घेरे में आ रहे थे. 10 सितम्बर को दिन में ही रतलाम एसपी को हटाना तय हो गया था बस स्क्रिप्ट लिखना बाकि था. 10 सितम्बर को अचानक सकल हिन्दू समाज की और से प्रतिनिधि मंडल अचानक शार्ट नोटिस पर रतलाम कलेक्टर से मिलने पंहुचा और एसपी की एकतरफा कार्यवाही की शिकायत की और रोष व्यक्त किया. उल्लेखनीय हैं की इस प्रतिनिधि मंडल में हिन्दू संगठनो के अलावा भाजपा जिला अध्यक्ष प्रदीप उपाध्याय भी थे. हलाकि की घटना वाले दिन और उसके बाद भी उन्होंने खुलकर कुछ नहीं कहा था मगर अचानक वो आये और पुलिस प्रशासन पर जमकर बरसे और कार्यवाही पर सवाल खड़े किये और जाँच की मांग करने लगे. ये सब उस स्क्रिप्ट का हिस्सा हैं जो पहले से तय हो चुकी थी. बस मोहरे अपना काम कर रही थी.
एसपी लोढ़ा ने भी की बचने की कोशिश, मगर असफल हुए
शाम को ही एसपी लोढ़ा को पता चल चूका था की मामला बिगड़ गया हैं और उनपर गाज गिर सकती हैं. उन्होंने स्तिथि को संभालने की कोशिश भी की अपने सोर्स भी लगाए मगर बात बनी नही तब आखिर में उनके खिलाफ कलेक्टर को मिले ज्ञापन/शिकायत पत्र के बाद 10 सितम्बर रात 12 बजे एक विडियो जारी कर अपील की गयी की शहर में शांति बनाये रखे जो भी दोषी होगा उसपर कार्यवाही की जा रही हैं और हमारी टीम उस पर कार्य कर रही हैं. ये सन्देश था की सामने वाले पक्ष पर भी कार्यवाही हो रही हैं या होने वाली हैं. इसके साथ ही एसपी लोढ़ा एक चुक के बैठे और बोले की एक अफवाह हैं की पुलिस की कार्यवाही से घायल एक युवक ने दो दिन बाद दम तोड़ दिया हैं. लेकिन वो दो निजी हॉस्पिटल में भर्ती था और उसने हॉस्पिटल में ही दम तोडा जबकि हिन्दू संगठनो ने उसकी मौत का आरोप पुलिस की लाठीचार्ज की कार्यवाही पर लगाया. एसपी लोढ़ा ने ये तक कह दिया की उसकी बॉडी पर चोट के कोई निशान नही थे. इससे लोगो में एसपी की छवि नकारात्मक बन गयी. क्योकि कई सूत्र बताते हैं की मृतक लाठीचार्ज में घायल हुआ था. खैर ये जाँच का विषय हैं.
कथित रूप से पुलिस ने लखन रजवाडिया ( पहले फरियादी बाद में मुख्य आरोपी ) के तार सुधाकर राव मराठा से भी जोड़ने का प्रयास किया लेकिन अभी तक कुछ भी साबित नही कर पायी. फिलहाल नए एसपी इस मामले की जाँच करेंगे और उम्मीद हैं सच जनता के सामने जल्द ही आएगा. 13 नामजद आरोपियों के आरोपों की जाँच भी होनी चाहिए क्योकि जब इस खेल में इतना सब कुछ हो रहा था जब जनता अपने एसपी की बात मान कर कई लोगो के चरित्र की मानसिक चित्रण कर रही थी. आरोपी अपराधी नहीं होता और जब तक यर साबित नही हो जाता की गुनाह किसने किया हैं तब तक किसी व्यक्ति के व्यक्तित्व की छवि नहीं बनानी चाहिए. ये मामला इतना पेचीदा हैं की इसकी निष्पक्ष जाँच होनी चाहिए .
- नोट : उपरोक्त लेख हमारे राजनीतिक और प्रशासनिक सूत्रों से मिली जानकारी के आधार पर हैं