कोयला मंत्रालय ने बतायी अपनी योजना व विकास, कोयला खदानो में खनन के बाद कैसे हो रहे उपाय?, पर्यावरण से समरसता बना कर चल रहा कोयला उद्योग, आइये जाने क्या है खनन के बाद कि योजनाएं
देश IMN, भारत सरकार के कोयला मंत्रालय द्वारा प्राप्त जानकारी के अनुसार कोयला उद्योग का सतत विकास निरन्तर जारी है। पर्यावरण की सुरक्षा को देखते हुए मंत्रालय द्वारा जैव खदान पर्यटन, फर्स्ट माइल कनेक्टिविटी और खदान जल के सही उपयोग जैसे अनूठे कदम उठाए गए।
इन उपायों में सिंचाई और पीने के उद्देश्य के लिए और खनन क्षेत्रों के आसपास और जल निकासी के लिए अधिशेष खान जल का उपयोग, ओवरबर्डन (ओबी) से रेत का उपयोग और इको-माइन पर्यटन को बढ़ावा देना, बांस वृक्षारोपण को प्रोत्साहित करना आदि शामिल हैं।
आइये जानते हैं विस्तार से:-
खदान के पानी का उपयोग
सर्वोच्च प्राथमिकता कोल इंडिया लिमिटेड, सिंगरेनी कोलियरीज कम्पनी लिमिटेड और एनएलसी इंडिया लिमिटेड की खनन सहायक कंपनियों के आसपास के क्षेत्र में ग्रामीण आबादी को सिंचाई के लिए और पीने के लिए उपचारित पानी उपलब्ध कराने के लिए खदान के पानी के लाभकारी उपयोग की है। खनन कार्य के दौरान जारी किए गए खदान के पानी की विशाल मात्रा का आंशिक रूप से उपयोग खादानों द्वारा आंतरिक खपत के लिए उनकी कॉलोनियों में पीने का पानी, धूल दमन, औद्योगिक उपयोग औऱ वृक्षारोपण आदि के लिए किया जाता है। खदान के कुल पानी का 45 फीसदी उपयोग आंतरिक खपत के लिए इस्तेमाल होता है और बाकी का पानी सामुदायिक जरूरतों के लिए पर्याप्त होता है। कोल इंडिया लिमिटेड की कुछ सहायक कंपनियां पहले ही आस-पास के गाँवों को पानी सिंचाई और पीने के लिए उपलब्ध करा रही हैं। सभी कोयला/ लिग्नाइट कंपनियों के लिए अपने कमांड क्षेत्रों में आस-पास के गाँवों में खदान के पानी की अधिकतम आपूर्ति के लिए एक विस्तृत योजना तैयार की गई है।
ईको पार्क
विभिन्न खनन क्षेत्रों में 10 नए ईको-पार्क कोल इंडिया लिमिटेड, सिंगरेनी कोलियरीज कम्पनी लिमिटेड और एनएलसी इंडिया लिमिटेड की विभिन्न सहायक कंपनियों में विकास के विभिन्न चरणों में हैं और अगले 2 वर्षों में पूरे हो जाएंगे। कोयला कंपनियों ने पहले ही विभिन्न कोयला क्षेत्रों में 15 इको-पार्क विकसित किए हैं। नागपुर के पास एमटीडीसी के सहयोग से वेस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड का सोनर इको पार्क भारत में अपनी तरह का पहला इको-माइन टूरिज्म सर्किट चला रहा है जहाँ लोग ओपनकास्ट और अंडरग्राउंड खदानों का खनन कार्य देख सकते हैं। पर्यावरण संरक्षण में कोयला कंपनियों द्वारा किए गए प्रयासों को प्रदर्शित करने के लिए विभिन्न कोयला कंपनियों में ईको-माइन टूरिज्म सर्किट शुरू करने की संभावना है। कोयला परिवहन सड़कों के किनारे और खानों के किनारों पर बांस के वृक्षारोपण से धूल प्रदूषण को कम करने में मदद मिलेगी।
ओवर-बर्डन से रेत निकासी और उसका उपयोग
निर्माण के दौरान उपयोग के लिए ओवर बर्डन (ओबी) से रेत की निकालने और खनन के दौरान उत्पन्न कचरे के उपयोग के माध्यम से सतत विकास को बढ़ावा देने वाली एक और अनूठी पहल की गई है। यह न केवल घर और अन्य निर्माण के लिए सस्ती रेत की उपलब्धता में मदद करेगी, बल्कि भविष्य की परियोजनाओं में ओबी डंप के लिए आवश्यक भूमि को भी कम करेगी। इससे नदी के किनारों से रेत के खनन के प्रतिकूल प्रभाव भी कम होते हैं। वेस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड में पहले ही यह प्रयास शुरू हो चुका है। यहां रेत प्रसंस्करण संयंत्र के माध्यम से सैंडप्रोडक्ट का इस्तेमाल प्रधानमंत्री आवास योजना (पीएमएवाई) और अन्य सरकार एवं निजी एजेंसियों द्वारा निर्माण के लिए कम लागत वाली आवास योजना के लिए किया जा रहा है।
फर्स्ट-माइल कनेक्टिविटी
फर्स्ट माइल कनेक्टिविटी (एफएमसी) कोयला कंपनियों द्वारा एक और प्रमुख स्थायी पहल है, जहां कन्वेयर बेल्ट के माध्यम से कोयला लोडिंग प्लांट से साइलो तक लोडिंग के लिए पहुंचाया जा रहा है। यह प्रक्रिया सड़क के माध्यम से कोयले की आवाजाही को समाप्त करती है और इस प्रकार न केवल न्यूनतम पर्यावरणीय प्रदूषण होता है, बल्कि कार्बन फुटप्रिंट को भी कम करने में मदद मिलती है। ऐसी 35 परियोजनाओं को 2023-24 तक चालू करने की योजना बनाई गई है जिनमें 400 मिलियन टन से अधिक कोयले के प्रबंधन किया गया है। एक बड़े कदम के रूप में 12500 करोड़ रुपये का निवेश इसमें किया जा रहा है।
अक्षय ऊर्जा
अक्षय ऊर्जा के उपयोग के लिए कोल इंडिया लिमिटेड ने बिजली के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनने के लिए वित्त वर्ष 2024 तक सौर पीवी परियोजनाओं से 3 जीडब्ल्यू हासिल करने का लक्ष्य रखा है। इसके अलावा 1000 मेगावाट क्षमता वाली 1 मेगा एसपीवी परियोजना 4000 करोड़ रुपये के निवेश के साथ कोल इंडिया लिमिटेड और एनएलसी इंडिया लिमिटेड के संयुक्त सहयोग में स्थापित की जाएगी।
जैव सुधार और वृक्षा-रोपण
जैव सुधार और बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण पर्यावरण स्थिरता को बढ़ावा देने में कोयला कंपनियों द्वारा किए गए प्रयासों में अहम रहा है। ओबी डंप्स पर ग्रीन कवर प्रदान करने के लिए कई खानों में सीड बॉल प्लांटेशन जैसी नई तकनीकों को अपनाया गया है। 2020 तक कोयला कंपनियों ने खनन क्षेत्रों में और उसके आस-पास 1.35 करोड़ पेड़ लगाकर लगभग 56000 हेक्टेयर भूमि को हरियाली दी है। 2021-22 के बाद से 2000 हेक्टेयर से अधिक प्रभावित भूमि को ग्रीन कवर में परिवर्तित किया जाना है। ऐसे प्रयासों की निगरानी रिमोट सेंसिंग के माध्यम से की जा रही है। इसी प्रकार, भूमि पुनर्ग्रहण और पुनर्स्थापना के साथ व्यवस्थित खदान बंद करने की योजना पर भी भविष्य में कृषि उद्देश्य के लिए भूमि का पुन: उपयोग करने के लिए सख्ती से निगरानी की जाती है।
इसी के साथ सरकार ने बताया की अगले पांच वर्षों में सतत विकास से संबंधित गतिविधियों पर बड़े पैमाने पर पूंजीगत निवेश की योजना बनाई गई है। निवेश में खनन उपकरण पर व्यय, सौर संयंत्रों की स्थापना, भूतल कोयला गैसीकरण, फर्स्ट माइल कनेक्टिविटी प्रोजेक्ट्स और पर्यावरण संरक्षण के लिए अन्य सभी अनूठी गतिविधियाँ शामिल हैं। ये सभी गतिविधियाँ अगले 5 वर्षों में बेहतर सतत विकास के लिए मार्ग प्रशस्त करेंगी। कोयला उद्योग के आर्थिक, पर्यावरण और सामाजिक मोर्चे पर किए जा रहे प्रयासों से ये संभव होगा।