पिछले 6 सालों में तेजी से बदलते भारत के Mainstream Media ने पिछले 4 महीने में जिस तरह से अपनी चाल, ढाल बदली है, खासकर मोदी सरकार की वापसी से लेकर सुशान्त सिंह चौहान केस के बाद हमें जो देखने को मिल रहा है, उससे हमें इस विषय पर बात करनी चाहिए। इस लेख में हम इन्हीं बदलावों पर बात करेंगें।
देश में 2014 के बाद तेजी से हुई IT क्रांति के बाद भारत का मेनस्ट्रीम इलेक्ट्रॉनिक मीडिया तेजी से बदला। यह बदलाव कुछ हद तक सही भी रहा और कुछ गलत भी, लेकिन जिस तरह के बदलाव व इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की आपसी स्पर्धा में पत्रकारिता के स्तर का हनन हमें पिछले 4 महीनों में खासकर सुशान्त सिंह राजपूत की कथित आत्महत्या से जुड़े मामलों की रिपोर्टिंग के बाद देखने को मिल रहा है,वह चिंताजनक है।
मुख्यतः पत्रकार का कार्य है सूचनाओं को सन्दर्भ के साथ इकट्ठा करना तथा उनका उचित रूप में जनता के मध्य सम्प्रेषण करना है। मतलब सूचनाओं को ज्यों का त्यों क्रमवार व्यवस्थित आम जनता तक पंहुचाना ही पत्रकारिता है। पत्रकारिता में शब्दों का चयन, बात को कहने की शैली तथा समाचार प्रस्तोता की सौम्यता व शिष्टाचार का भी विशेष महत्व है। एक समाचार प्रस्तोता, समाचार तैयार करने वाले रिपोर्टर, सम्पादक आदि का तटस्थ रहना आवश्यक होता है, यही कारण है की एक विचारधारा के अनुरूप ही रिपोर्टिंग करने और खबरे चलाने के कारण हिन्दी का एक बड़ा टीवी चैनल जो आज भी पत्रकारिता करने के पैमाने पर अन्यों से ऊंचा हैं लोकप्रियता के मामले में अधिगति को प्राप्त है। जबतक आपका कंटेंट और आपके प्रस्तोता तथा लेखक तटस्थ अथवा मध्यममार्गी नहीं होंगे आप सही मामले में पत्रकारिता नहीं कर सकतें।
मोदी सरकार के आने के बाद हमने देखा कि वामपंथी विचारधारा के ध्वजवाहक कई पत्रकारों को अपनी कुर्सी से हाथ धोना पड़ा, जो पहले बड़े न्यूज चैनलों के प्राइम टाइम पर आकर देश में परिवर्तन लाने की बातें किया करतें थें, वें आज अपनी विचारधारा को टीवी की स्क्रीन पर दिखलाने से न बच पाने के कारण टिक नहीं पायें। जब-जब मीडिया किसी एक पक्ष की ओर ज्यादा झुकेगा उसको नुकसान होगा, यहाँ पर संतुलन सबसे जरूरी है, क्योंकि दर्शक भी इस बात को समझता है, वो किसी चैनल को एक ही विषय पर आश्रित होते देख उसको शीघ्र ही छोड़ देता है। दर्शक को आपसे सभी तरीके की बातें चाहिये, आप किसी एक मुद्दे या एक विचारधारा के पैरोकार बन कर लंबे समय तक दर्शकों को अपने से जोड़ कर नहीं रख सकतें, अगर वो आपको पसंद भी करता हो तो एक दिन बोर होकर आपको छोड़ देगा।
पिछले कुछ वर्षों से देश में इंटरनेट का प्रवाह बढ़ने के कारण ज्ञान व जानकारी से आम भारतीय युवा व व्यक्ति की जो दूरी थी उसमें कमी हई, आज व्यक्ति एक क्लिक पर किसी भी जानकारी को खोज सकता है, वो किसी चैनल या अन्य का मोहताज नहीं रहा है। यही कारण है कि हमने इन सालों में तेजी से बढ़ते न्यूज पोर्टल व यूट्यूब चैनलों की पौध देखी गई हैं, जो जनता के सामने मेनस्ट्रीम इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के मुकाबले अपनी उपस्थिति मजबूती से दिखा पा रही हैं, सोशल मिडिया तो इतना ताकतवर हो गया है की वहां के ट्रेंड के आधार पर बड़े-बड़े मिडिया हॉउस स्पेशल बुलेटिन व डिबेट करवाते है।
अन्य देशों के मुकाबले भारत का मीडिया TRP व चटोरी खबरों को लेकर ज्यादा फोकस रहता है, यही कारण है, जिसकी वजह से हम हमेशा अपने चैनलों को या तो सत्ता के साथ देखतें हैं या खबरों की जगह गॉसिप हमें न्यूज चैनल रोज परोसते देखें जातें हैं। अभी चल रहें सुशान्त सिंह राजपूत व अन्य मामलों की विशाल कवरेज का प्रमुख कारण इनमें गॉसिप व TRP दोनों का होना ही हैं। आप खुद देखिये समाचार के नाम पर सनसनी व चटपटी कहानियां दिखाने के लिये आतुर हमारे कई टीवी चैनल आजकल दिनभर मात्र सुशान्त व बॉलीवुड ड्रग्स से जुड़ी खबरे दिखा रहें हैं, जैसे अन्य किसी मसले से देश को कोई सरोकार ही न हो। इन चैनलों की TRP लूटने की लड़ाई इतनी तेज हो चुकी है की हम चैनलों को एक दूसरे के विरुद्ध प्रोमो चलाते, पत्रकारों को एक दूसरे को थपड़ियाते तथा सुरक्षा एजेंसियों के साये में रिपोर्टिंग करते देख रहें हैं।
भारत का मीडिया समाचार नहीं मुख्यतः प्रोपेगेंडा और गॉसिप से ही चलता है, क्योंकि इनका काम पैसा कमाना है वो खबरों से नहीं आयेगा अतः इनको विज्ञापन तथा अन्य लाभों के लिये ऐसा करना पड़ता है। वर्तमान में भारत में चलने वाले किसी भी चैनल को निष्पक्ष, मध्यमार्गी अथवा तटस्थ नहीं कहा जा सकता। रिपब्लिक मीडिया, इंडिया टीवी, ज़ी न्यूज़ जैसे चैनल जहाँ सत्ता पक्ष की विचारधारा के बहाव में बहते दिख रहें हैं वहीं NDTV, INDIA TODAY आदि विपक्ष व वामपंथी विचारधारा के चश्मे से देश को देख कर रिपोर्टिंग कर रहें हैं। ये दोनों ही बराबर गलत है।
मीडिया का काम न तो सत्ता का सहयोग करना है न ही हर बात पर सत्ता की आलोचना करना है, बल्कि मीडिया का काम सत्ता को आईना दिखाना है, जो कि दुर्भाग्य से भारत का कोई भी प्रमुख मीडिया हाउस करता नहीं दिख रहा है, सभी अपने एजेंडे को आगे बढ़ाने में लगे हैं, देश व पत्रकारिता किसी के एजेंडे में नहीं दिख रही है, जो कि दुःखद है।
उत्तेजक म्यूजिक के साथ समाचार पढ़ना, समाचार को सनसनी बनाकर पेश करना, कई चैनलों पर कुश्ती के अंदाज में हाइ जोश में चिल्लपो के साथ समाचार पढ़ते या डिबेट करवाते हुये एंकरों का दिखना, देश व समाज हित के मुद्दों की वजाय निरर्थक सोशल मीडिया की बहसों पर टीवी डिबेट करवाना आदि जो बदलाव हम इन दिनों देख रहें हैं, वो भारतीय मीडिया को हानि पँहुचा रहें हैं, भारतीय मीडिया जिसे विश्वसनीयता के मामले में अफगानिस्तान, बंगलादेश जैसे देशों से भी पीछे माना जाता है वो अगर ऐसी ही रही तो भारत को कितना नुकसान होगा इसका अंदाजा नहीं लगाया जा सकता।
मेनस्ट्रीम मीडिया को स्वयं को तुरन्त दुरुस्त करना आवश्यक है, राइट या लेफ्ट की जगह सेंट्रल मार्ग पर चल कर ही वो ऐसा कर सकती है। वामपन्थ व दक्षिणपंथ दोनों को समान स्थान देते हुये, दोनों की विचारधारा से जनता को अगवत करवाना मीडिया का काम है, मीडिया उसे करे, लेकिन कौनसी विचारधारा सही है ये बताना मीडिया का काम नहीं है, ये वो ना करे। सरकार ने कुछ अच्छा किया है तो उसकी तारीफ करें, गलत किया है तो उससे सवाल करें, झूठ बोला है तो उसे देश के सामने बेनकाब करें लेकिन अंध समर्थन अथवा अंध विरोध से बचें, इन दोनों से सरकार को तो लाभ है लेकिन पत्रकारिता व देश को अपूरणीय क्षति हो रही है। मीडिया को समझना चाहिये उसका अस्तित्व समाचार सम्प्रेषण व सामाजिक जागरूकता के लिये है किसी खास विचारधारा के प्रचार हेतु नहीं, अगर ऐसा नहीं हुआ तो एक दौर ऐसा आयेगा जब भारत के लोगों का इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से विश्वास उठ जायेगा।
पिछले 4 महीनों में कई सारी बाते हुई, मसलन भारत-चीन विवाद, अर्थव्यवस्था का धराशायी होना, विवादित श्रम व कृषि सुधार कानून, कोरोना का बढ़ता स्वरूप, बेरोजगारों के सैकड़ों प्रदर्शन (कल ही राजस्थान में इसका हिंसक स्वरूप देखा गया है) आदि। लेकिन हमारे मेनस्ट्रीम मीडिया में इनपर बहुत कम बातें दिखी, क्षेत्रीय इलेक्ट्रॉनिक चैनलों को छोड़ दीजिये तो लगभग सारे राष्ट्रीय चैनल सुशान्त केस व बॉलीवुड ड्रग मामले के ब्रेकिंग चलाते व डिबेट करवाते दिखें। यहां भी इन चैनलों ने कोई उत्पादक बात नहीं कि बल्कि रायता ही फैला रहें हैं। इनके कथित आरोपित सितारों के घरों के बाहर, NCB, CBI, ED आदि के कार्यालयों के बाहर से रिपोर्टिंग करने से इनको TRP तो मिलती ही है लेकिन जांच एजेसियों आदि को जो दिक्कतें इनकी वजह से होती है उसका वर्णन यहाँ करने से लेख लंबा हो जायेगा।
जब मामला इतना बड़ा है, बॉलीवुड-राजनीति-माफिया का गठजोड़ है, आप मेहनत कर के देश की इलीट संस्थाओं को इनकी जांच में लगा चुके हो, आप अब हट जाओ और इन्हें इनका काम करने दो, आपके द्वारा केस से जुड़ी सूचनाओं को तेजी से पंहुचाने का लाभ कभी-कभी अपराधी को होता है, जांच प्रभावित होती है, अतः जिम्मेदार मीडिया संस्थान होने की वजह से आपको इससे बचना चाहिये कि अब भी आप 24 घण्टे सुशान्त केस के गीत गाओ। हां आप इस मामले से ध्यान मत हटाओ 1-1 घण्टे के दो बुलेटिन रोज रखो, जिसमें दिन भर की हर खबर व हर पक्ष को जनता के सामने रखे, दबाव बनाके रखो, छोड़ो मत।
भारत का मीडिया अगर जिम्मेदारी के साथ अपने कार्य को करने लगे तो, भारत में कई रचनात्मक बदलाव हो सकतें हैं, हमारे पास इस क्षेत्र में पर्याप्त जन संसाधन और टेक्नोलॉजी है। लेकिन यह होना मुश्किल है, क्योंकि आज के ज़माने में पैसा बोलता है, लेकिन फिर भी एक पत्रकार और आम नागरिक जो टीवी पर खबरे देखना पसंद करता है होने के नाते मैं ईश्वर से चाहूंगा कि वो हमारे प्रमुख मीडिया घरानों के मुखियाओं को सद्बुद्धि दें। जल्दी ही मीडिया मध्यममार्गीय दिखे। सही-गलत, राइट-लेफ्ट, अगला-पिछला सब दिखाये, समाचार व हानि-लाभ बतायें निर्णायक न बनें क्या जनता के लिये देश के लिये सही है उसका निर्णय अपने दर्शक को करने दे।
आज का दर्शक इतना बुद्धिमान है कि आपकी रिपोर्ट को देख के, विशेषज्ञों को सुन के, दोनों पक्षों को देख के सही गलत का फैसला कर लेगा। आप तो बिना किसी सनसनी, सनसनाते म्यूजिक और चिल्लपो के खबर दिखाओ, डिबेट कराओ, विश्लेषण करो और किसी का पक्ष मत लो।
नये व आत्मनिर्भर भारत के निर्माण में आपका भी योगदान है, ऐसे में अपना कर्तव्य करें, TRP की इच्छा मत करें वो अपने आप मिलेगी। वर्तमान में हमारा सत्ता पक्ष मजबूत है, विपक्ष बिखरा हुआ व अत्यंत कमजोर है, ऐसे में भारत के मेनस्ट्रीम मीडिया को अत्यंत मुखर, उदार, निष्पक्ष व मध्यमार्गीय होना आवश्यक है। अगर ऐसा नहीं हुआ तो बिना किसी सशक्त विरोध के सत्ता पक्ष अत्यंत मजबूत हो जायेगा, जिससे युवा और विकसित होते भारत को नुकसान है।
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