skslko28@gmail.coलखनऊ/इंडियामिक्स समाजवादी पार्टी के पास अपनी राजनैतिक रोटियां सेंकने के लिये काफी कम विकल्प बचे हैं।इन्हीं विकल्पों में से जो दो सबसे खास हैं। उसी के तहत सपा प्रमुख अखिलेश यादव मुस्लिम और जातिवाद की राजनीति से ऊपर नहीं उठ पा रहे हैं। लगता है कि यूपी के उपचुनाव में मिली करारी हार के बाद भी अखिलेश ने कोई सबक नहीं लिया है,यदि सबक लिया होता तो संसद के शीतकालीन सत्र में वह जातिगत जनगणना की मांग पर जोर नहीं देते। हिन्दुओं के खिलाफ होने वाली हिंसा को अनदेखा करके मुस्लिम तुष्टिकरण की सियासत के लिये संभल-संभल नहीं चिल्लाते। समाजवादी पार्टी ने कुछ माह पूर्व हुए आम लोकसभा चुनाव में पिछड़े-दलित-अल्पसंख्यक (पीडीए) के सहारे जो ‘करिश्मा’ किया था, वह यूपी के उप चुनाव में पूरी तरह से धाराशायी हो गया। नौ की नौ सीटों पर जीत का दावा कर रहे अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी उप चुनाव में दो सीटों पर सिमट गई। इसमें से भी एक सीट उनके परिवार के सदस्य की थी, जबकि 2022 के विधानसभा चुनाव में वह नौ में से पांच सीटें जीतने में सफल रही थी। अखिलेश के लिये सबसे अधिक चिंताजनक हार मुस्लिम बाहुल्य कुंदरकी विधानसभा की रही। यहां की हार के बाद अब सवाल यह भी उठने लगा है कि क्या मुसलमानों का अखिलेश के प्रति मोह कम हो रहा है। ऐसा इस लिये भी कहा जा रहा है क्योंकि कुंदरकी में मुसलमानों ने सपा के मुस्लिम प्रत्याशी को अनदेखा करके बिना हिचक बीजेपी के हिन्दू प्रत्याशी के पक्ष में मतदान किया था। कुंदरकी में भाजपा प्रत्याशी रामवीर सिंह ने ऐतिहासिक जीत हासिल की। रामवीर सिंह ने सपा के उम्मीदवार मोहम्मद रिजवान को हराकर कुंदरकी सीट पर विजय प्राप्त की। रामवीर सिंह को 168526 वोट जबकि रिजवान को 25334 वोट मिले। रामवीर ने सपा के उम्मीदवार को 143192 यानी करीब डेढ़ लाख वोटों से हराया।उपचुनाव के नतीजों से ये भी साफ हो गया कि अखिलेश का गठबंधन को तरजीह ना देना भारी पड़ गया। अखिलेश ने इंडिया गठबंधन के लड़ने की बात तो कही। मगर इंडिया गठबंधन के प्रमुख दल कांग्रेस को विधानसभा चुनावों में वो सीटें नहीं दी जो कांग्रेस चाहती थी। जिसकी वजह से कांग्रेस के नेताओं ने भी इस चुनाव से दूरी बनायेे रखी। इंडिया गठबंधन का हिस्सा होने के बाद भी अखिलेश ने सात सीटों पर एकतरफा तौर पर प्रत्याशियों का ऐलान कर दिया। जबकि कांग्रेस प्रयागराज की फूलपुर सीट पर उपचुनाव लड़ना चाहती थी। जानकार मानते हैं कि अगर कांग्रेस को सीट मिलती और वो भी एसपी के साथ पूरी ताकत से चुनावी मैदान में रहती तो नतीजे कुछ अलग हो सकते थे।ऐसा इसलिये भी कहा जा सकता है क्योंकि मुस्लिम वोटरों में राहुल गांधी और कांग्रेस की स्वीकार्यता काफी तेजी से बढ़ रही है।
चुनाव नतीजों से इत्तर उप चुनाव के परिदृश्य की बात करें तो पूरे प्रचार के दौरान इंडिया गठबंधन में शामिल कांग्रेस ने अपने गठबंधन के सहयोगी समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी के प्रचार से दूरी बनाये रखी। मतदान वाले दिन किसी भी विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस का बस्ता लगा नहीं दिखा। कांग्रेस के नेता भी नदारद थे। मतगणना वाले दिन तक भी लखनऊ के माल एवेन्यू रोड स्थित कांग्रेस के प्रदेश कार्यालय में सन्नाटा पसरा हुआ था। कांग्रेस जैसी ही स्थिति बहुजन समाज पार्टी के प्रत्याशियों की भी नजर आई। काफी हद तक बसपा का दलित वोटर चन्द्रशेखर की आजाद समाज पार्टी के पक्ष में मतदान करता दिखा,जिसकी वजह से चन्द्रशेखर की पार्टी का प्रदर्शन बसपा के मुकाबले काफी बेहतर रहा। उधर,नतीजों से नाराज बसपा सुप्रीमो मायावती ने भविष्य में उप-चुनाव नहीं लड़ने की घोषणा कर दी है।
समाजवादी पार्टी को इतनी बड़ी हार क्यों मिली ? यह कैसे हुआ ? इसके बारे में जानने-समझने के लिये अतीत के पन्नों को पलटना होगा। अखिलेश यादव ने लोकसभा चुनाव में दूर की सोच दिखाते हुए मुस्लिम नेताओं को टिकट देने में कंजूसी दिखाई थी,इसके पीछे अखिलेश की यही सोच थी कि उनके द्वारा मुस्लिम प्रत्याशी को मैदान में उतारने पर बीजेपी के पक्ष में हिन्दू वोटों का ध्रुवीकरण हो जाता है,जबकि सपा किसी हिन्दू नेता को टिकट देती है तो हिन्दू वोटर तो बंट जाते हैं लेकिन अल्पसंख्यक वोटर पूर्व की भांति सपा के पक्ष में ही लामबंद रहते जिसका सीधा फायदा समाजवादी पार्टी को होता है। इसी को ध्यान में रखकर ही अखिलेश ने पीडीए की सियासत शुरू की थी,लेकिन कहा जाता है कि काठ की हांडी बार-बार नहीं चढ़ती है, ऐसा ही अखिलेश के साथ हुआ। दरअसल, अखिलेश यादव मुस्लिम तुष्टिकरण की सियासत में इतनी बुरी तरह से उलझ गये हैं कि वह इससे बाहर ही नहीं निकल पा रहे हैं। अखिलेश का हाल यह है कि वह बात तो पीडीए की करते हैं,लेकिन जब अपराधी किस्म का कोई मुसलमान किसी पिछड़ा(पी) या दलित(डी) समाज के किसी व्यक्ति की इज्जत उछालता है। उसके साथ अपराधिक कृत्य करता है तो अखिलेश इसे पूरे मुस्लिम समाज से जोड़कर चुप्पी साध लेते हैं।यह बात पिछड़ा और दलित समाज को अखिलेश से दूर ले ही जाती है ।
Muslim Politics : मुस्लिम और जातिवादी राजनीति में उलझे अखिलेश को फायदा कम नुकसान ज्यादा
Akhilesh, entangled in Muslim and caste politics, has more losses than gains
वरिष्ठ पत्रकार, इंडियामिक्स, उत्तर प्रदेश
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