भगवान राम, प्रत्येक भारतीय के अंतर्मन में बसी मात्र एक देव छवि का संबोधन भर नहीं है अपितु यह एक चरित्र है जिसके जीवन मूल्यों पर सारा सनातन सिस्टम टिका है
इंडियामिक्स न्यूज़ भगवान राम, प्रत्येक भारतीय के अंतर्मन में बसी मात्र एक देव छवि का संबोधन भर नहीं है अपितु यह एक चरित्र है जिसके जीवन मूल्यों पर सारा सनातन सिस्टम टिका है. हिन्दू धर्म का साक्षात स्वरूप श्रीराम का जीवन हैं, राम को विग्रहवान धर्म कहा गया है. ऐसे में आगामी 5 अगस्त को अयोध्या में भगवान राम के मंदिर के पुनर्निर्माण हेतु आयोजित किये जाने वाले शिलान्यास को लेकर देशभर की राजनीति में मचा हो हल्ला यह एहसास करवाता है की शुभ कार्य के समय कई लोगों को परेशानी होने वाली कहावतें/लोकोक्तियाँ यूँही थोड़ी ही बनी है, उनका निर्माण हर युग में ऐसा आचरण करने वाले लोगों को देखकर ही किया गया होगा.
राजनीति करने वाले इस मंदिर के पुनर्निर्माण के पीछे के संघर्ष, जनभावना तथा लम्बी क़ानूनी लड़ाई को भूल कर एक बार फिर तुष्टितुष्टिकरण की नाव में सवार है, जो उन्हें डूबा कर ही छोड़ेगी. जो लोग यह कह रहें हैं की प्रधानमंत्री को किसी मंदिर के शिलान्यास कार्यक्रम में नहीं जा ना चाहिए, वो इस मंदिर के गौरव का अवमूल्यन कर रहें हैं. पवित्रता के मानक पर वर्तमान धर्मों से तुलना के लिहाज में कहा जाये तो श्रीराम मंदिर का महत्व हिन्दू धर्म में ठीक वैसा ही महत्व है जैसे ईसाइयत में वेटिकन सिटी व इस्लाम में मक्का-मदीना का. ऐसे में भारत का प्रधानमंत्री इस मंदिर के पुनर्निर्माण के कार्यक्रम में न जाये यह भगवान श्रीराम व भारत के जनमानस का अपमान होगा. इस कार्यक्रम के विरोध में कुछ लोग कोरोना का हवाला दे रहें हैं, जो की निराधार है ।
उत्तरप्रदेश शासन सीधे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के निरिक्षण में इस कार्यक्रम की तैयारियां कोविड-19 की गाइडलाइन के अनुसार कर रहा ऐसे में इस तर्क की गुंजाईश ही कहा रह जाती है ? मेरे अनुसार कोरोनाकाल में मंदिर का निर्माण करना एक सुंदर निर्णय है. सामान्य दिनों में अगर मंदिर का निर्माण कार्यक्रम शुरू होता तो शिलान्यास के दिन व उसके बाद अयोध्या में रामभक्तों का बड़ा रेला हमेशा दीखता, लेकिन कोरोनाकाल के कारण ऐसा नहीं हो पा रहा है, जिसकी वजह से शिलान्यास कार्यक्रम में भीड़ उमड़ने व लगातार भक्तों के दर्शनार्थ आने के कारण मंदिर के निर्माण की गति में कमी आने की सम्भावना का निराकरण हो गया. इस समय निर्माण कार्य तेजी से बढ़िया होगा, विषम काल में लोगों को रोजगार भी मिलेगा
ओवैसी बंधू कह रहें हैं की वो अपनी अगली पीढ़ी को सिखायेंगे की मस्जिद गिरा कर मंदिर बनाया गया. इसे ही नफरत की फसल बोना कहतें हैं. अगर वो ये बताएँगे की ‘यहाँ मंदिर तथा जिसे बाबर नामक आक्रान्ता ने तोड़ कर मस्जिद बना दी थी, जिसको लेकर अयोध्या व आसपास के राजाओं,जागीरदारों ने संघर्ष किया. ब्रिटिश शासन में भी यह विवाद चलता रहा, विहिप द्वारा विवादित ढांचा गिराने के बाद न्यायालय ने मुकदमे में तेजी पकड़ी, सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाकर मंदिर निर्माण करने की अनुमति दी’ तो उनकी राजनीति कैसे चलेगी ?
कुछ लोगों का कहना है की मंदिर शिलान्यास के कार्यक्रम को दूरदर्शन के माध्यम से दिखाना देश के सेक्युलरिज्म पर खतरा है. यह कैसी अनर्गल बात हुई. वेटिकन के पॉप 1986 में जब भारत आये थे तब उनकी यात्रा दूरदर्शन पर प्रसारित हुई थी. 2006,13 में वेटिकन से पॉप का भाषण दूरदर्शन पर प्रसारित किया गया, 2012 में कोहिमा की बापिस्त चर्च का गोल्डन जुबली कार्यक्रम दूरदर्शन पर दिखाया गया. मक्का-मदीना के दर्शन भी दूरदर्शन पर करवाया जाता रहा है. ऐसे में कोरोनाकाल के कारण जब रामभक्त अयोध्या नहीं आ सकते तो सरकार इसका प्रसारण करने का निर्णय लेती है तो सेक्युलरिज्म कैसे खतरे में आ गया. उल्टा अगर इसका प्रसारण नहीं करते व अन्यों का प्रसारण पूर्व की भांति करते रहता तो सेक्युलरिज्म की भावना को अवश्य ठेस पंहुचती.
राजनीति राम मंदिर पर भले ही कितनी ही हो रही हो, इससे रामभक्त की भावना का बल कम नहीं हो रहा है, वो मंदिर बनने के उल्लास में मगन हैं. होना भी चाहिए, क्यूंकि 500 वर्ष से अधिक लम्बे संघर्ष के बाद यह दिन आया है, जिसकी महत्ता इस तुच्छ राजनीति से सहस्रों गुना अधिक है. राजा महताबसिंह (अयोध्या, 1520-60) द्वारा शुरू किया गया यह संघर्ष वर्तमान में अशोक सिंहल, लालकृष्ण आडवानी आदि के द्वारा लड़ा गया, जिसकी परिणिति कोर्ट का फैसला आने के बाद बन रहा मंदिर है. ऐसे में मंदिर निर्माण के कार्यक्रम कर बेवजह प्रश्न करने वाले लोगों की दृष्टि पे तरस आता है जो हर भारतीय के मन में श्रीराम मंदिर के पूर्ण हो रहे स्वप्न हो नहीं देख पा रही है ।