मोदी सरकार द्वारा लाये गए तीनों नवीन खेती-किसानी सम्बन्धी कानूनों का लगातार विरोध हो रहा है. कांग्रेस प्रधानमंत्री मोदी को झूठा, किसानों-मज़दूरों को रुलाने वाला व पुजीपतियों का सहयोगी बताते हुए इसे काला कानून बता रही है.
सम्पादकीय / इंडियामिक्स न्यूज़ मोदी सरकार द्वारा लाये गए तीनों नवीन खेती-किसानी सम्बन्धी कानूनों का लगातार विरोध हो रहा है. कांग्रेस प्रधानमंत्री मोदी को झूठा, किसानों-मज़दूरों को रुलाने वाला व पुजीपतियों का सहयोगी बताते हुए इसे काला कानून बता रही है. वामपंथी दल भी इसे मज़दूरों-किसानों के लिए नुकसानदायक बता रहें हैं, पंजाब व हरियाणा में इन क़ानूनों का मुखर विरोध देखने को मिल रहा है. दलजीत दोसंझ आदि कई पंजाबी सेलेब्रेटीज सोशल मीडिया पर इन क़ानूनों का मुखर विरोध कर रहें हैं.
अगर हम कांग्रेस की बात करें तो इनका इन विरोध पुर्णतः राजनीति से प्रेरित प्रतीत होता है. क्योंकि कांग्रेस ने 2019 के लोकसभा चुनावों में अपने घोषणापत्र में किसानों से जुड़ी घोषणाओं में क्रमांक 11 पर घोषणा की थी कि Agricultural Produce Market Committees Act को समाप्त कर दिया जायेगा जिससे किसान अपनी उपज दूसरे राज्यों में भी बेच सके तथा क्रमांक 21 पर लिखा है की आवश्यक वस्तु अधिनियम अब पुराना हो गया है, इसकी जगह नया कानून लाया जायेगा जिसके तहत मात्र आपात स्थितियों में ही भंडारण की अनुमति होगी. इसी तरह 2014 के लोकसभा चुनावों के घोषणापत्र में कांग्रेस ने फलों व सब्जियों को APMC एक्ट से हटाने का वायदा किया था तथा इसे कांग्रेस शासित 11 राज्यों में लागू भी कर दिया था.
इसी प्रकार तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कांट्रेक्ट फार्मिंग पर एक कमेटी बनाई थी जिसने 2013 में जारी अपनी रिपोर्ट में कांट्रेक्ट फार्मिंग का समर्थन करते हुये कहा था की किसान को कही भी अपनी फसल बेचने की छुट नहीं मिलने के कारण वो बिचौलियों की जाल में फँस जातें हैं जिससे उन्हें उनकी उपज का उचित मूल्य नहीं मिलता है. ऐसे में जिन क़ानूनों को कांग्रेस नहीं लागू कर पाई उन्हें अगर मोदी सरकार लागू कर रही है तो उसका विरोध करना राजनीति के अलावा और कुछ नहीं हैं.
आज सोशल मीडिया के युग में अपनी प्रासंगिकता बनाये रखने के लिए कांग्रेस इन क़ानूनों का विरोध कर के अपना नुकसान कर रही है. कांग्रेस को अगर लग रहा है की वर्तमान सरकार द्वारा लाये गए इन क़ानूनों में कोई कमी है तो उसे जनता, किसानों तथा सरकार को इससे अवगत करवाना चाहिए तथा सरकार पर उन प्रावधानों को लागू करवाने के के लिए दबाव बनाना चाहिए, इनके दबाव की वजह से अगर इन क़ानूनों में कोई रचनात्मक बदलाव होता है तो कांग्रेस को इस विरोध की राजनीति के मुकाबले अधिक लाभ होगा.
आखिर यह तीनों क़ानून हैं क्या ?
1. किसान उपज व्यापार और वाणिज्य ( संवर्धन और सरलीकरण ) विधेयक 2020
यह विधेयक किसानों को अपनी उपज अनाज ( गेंहूँ, चावल, मोटे अनाज ), तिलहन, दलहन, तेल, सब्जियां, फल, मसाले और गन्ना. इनके साथ ही (क) पोल्ट्री, पिगरी, गोटरी, फिशरी तथा डेयरी उत्पाद, (ख) कच्चा कपास, जूट, पटसन तथा (ग) पशुओं के चारे, खली आदि को अपने राज्य या राज्य के बाहर कहीं भी बेचने की स्वतंत्रता मिली हैं. अब किसान अपनी उपज को बेचने के लिये राज्य में संचालित APMC मंडी व्यवस्था का मोहताज नहीं रहा है, यह कानून किसान को पुरे देश में एक समान तकनीकी आधारित बाजार मुहैया करवाता है.
यह अधिनियम किसानों, किसान उत्पादक संगठनों व किसानी उपज को खरीदने वालों को राज्य के बीच व राज्य के भीतर व्यापार में थोक, रिटेल, एंड यूज, मूल्य संवर्धन, प्रोसेसिंग, मेन्युफेक्चरिंग, निर्यात तथा उपभोग की अनुमति देता है, किसान अथवा किसान उत्पादक संघ इस प्रकार सीधे व्यापारी व व्यापार से जुड़ कर मुनाफ़ा कमा सकतें हैं.
यह अधिनियम कृषि उत्पादों की इलेक्ट्रानिक ट्रेडिंग की व्यवस्था देता है जिसके तहत इलेक्ट्रोनिक ट्रेडिंग व ट्रांजेक्शन प्लेटफोर्म का निर्माण व संचालन कंपनियाँ, पार्टनरशिप फर्म या पंजीकृत सोसायटियां जिनके पास PAN नम्बर या केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचित ऐसा कोई अन्य दस्तावेज हो, किसान उत्पादक संगठन व कृषि सहकारी संघ कर सकते हैं. इस सुविधा से किसान अपनी उपज को घर बैठे बेच-खरीद सकता है तथा उसके उत्पाद की फिजिकल डिलीवरी सुनिश्चित की जा सकेगी. इस व्यवस्था से निजी फर्म व पहले से संचालित किसानों के विभिन्न सहकारी संगठन अपना स्वयं का नेटवर्क बना सकते है, निजी क्षेत्र के व्यापारी भी इसमें अपना नेटवर्क डवलप कर सकेंगे, जिससे बाजार में प्रतियोगिता बढ़ेगी, किसान को अपनी उपज बेचने के लिए अधिक विकल्प मिलेंगे तथा उचित मूल्य भी मिलेगा. इलेक्ट्रोनिक व्यवस्था होने के कारण भुगतान भी तुरन्त होगा, हालाँकि यह अधिनियम विभिन्न खरीददारों को 3 कार्यदिवसों में किसान का भुगतान करने के लिए बाध्य करता हैं.
इन इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग संगठनो के लिए केंद्र सरकार प्रक्रिया, नियम व पंजीकरण की विधि, गुणवत्ता का आकलन व भुगतना विधि तय करेगी. अगर कोई प्लेटफोर्म केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित निति-नियमों का उल्लंघन करता है या अनुचित माध्यम से व्यापार संचालित करता है तो उस प्लेटफोर्म के संचालन को रद्द किया जा सकता है. प्लेटफोर्म को संचालित करने वाली सस्ता या व्यक्ति अगर नियमों का उल्लंघन करता है उससे अपराध की प्रकृति के आधार पर 50 हजार से 10 लाख तक का जुर्माना वसूल किया जा सकेगा. निरंतर उल्लंघन करने वाली संस्था या व्यक्ति से प्रतिदिन 10 हजार से अधिक की दर से जुर्माना वसूल किया जा सकेगा.
केंद्र द्वारा निश्चित आचार संहिता व पैरामीटर्स के आधार पर व्यापार करने पर राज्य सरकारें किसानों, व्यापारियों व इलेक्ट्रोनिक ट्रेडिंग प्लेटफोर्म से कोई भी बाजार फीस, सेस व प्रभार नहीं ले सकेगी. इससे किसानों व व्यापारियों दोनों को लाभ होगा, किसानों को जहाँ टेक्स भरने से बचत होगी वही व्यापारियों को टेक्स कम देना पड़ेगा जिससे उनके पास किसानों के उत्पाद अच्छे भाव में खरीदने की सुविधा होगी.
यह कानूनों किसानों के साथ किसी विवाद की स्थिति में किसानों की सुरक्षा का पूरा प्रावधान करता है, व्यापार सम्बन्धी विवाद में कोई भी पक्ष सुलह के लिए समबन्धित SDM कार्यालय में आवेदन कर सकता है, SDM अपनी अध्यक्षता में एक सुलह बोर्ड का निर्माण करेंगे जिसमें कम से कम 2 व 4 से अधिक सदस्य होंगे, अगर कोई पक्षकार अपनी पैरवी के लिए इस कमिटी में सदस्य की सिफारिश 7 दिन में नहीं कर सका तो SDM अपनी इच्छा से उपयुक्त व्यक्ति उस पक्ष की पैरवी के लिए तय कर सकेगी, इस कमिटी को अधिकतम 30 दिनों में मामले को सुलझाना होगा. अगर 30 दिनों के बाद भी विवाद नहीं सुलझा तो सभी पक्ष मजिस्ट्रेट के समक्ष अपील कर सकेंगे. पक्षकारों के पास यह भी अधिकार है की वो मजिस्ट्रेट के फैसले के विरुद्ध अपीलीय ऑथिरिटी ( जिला कलेक्टर या कलेक्टर द्वारा नामित एडिशनल कलेक्टर ) में अपील कर सकेंगे. किसानों या व्यापारियों को किसी अप्रिय स्थिति में स्थानीय स्तर पर ही विवाद निपटारे की व्यवस्था दे कर सरकार ने न्याय को सुलभ बनाने का प्रयास किया है.
2. मूल्य आश्वासन तथा कृषि सेवाओं पर किसान ( सशक्तिकरण और संरक्षण ) समझौता अधिनियम 2020
यह अधिनियम कृषि उत्पादों की बिक्री व खरीद के सम्बन्ध में किसानों को संरक्षण देने और उनके सशक्तिकरण हेतु फ्रेम वर्क प्रदान करता है. इसके प्रावधान राज्यों के APMC एक्ट के प्रावधानों के साथ लागू होंगे.
अधिनियम में प्रावधान है की किसी कृषि उत्पाद के उत्पादन या पालन से पहले कृषि समझौता किया जाएगा, जिससे किसान अपने उत्पादों की किसी भी स्पोंसर को आसानी से बेच सकेंगे. स्पोंसर से तात्पर्य व्यक्ति, पार्टनरशिप फर्म्स, कम्पनियाँ, लिमिटेड लायबिलिटी ग्रुप्स तथा सहकारी समितियां हैं. ये समझौते किसान व स्पोंसर के मध्य सीधे तथा किसान, स्पोंसर व तीसरे पक्ष के मध्य हो सकेंगे. तीसरे पक्ष के रूप में एग्रिकेटर शामिल होगा, जिसकी भूमिका व सेवाओं का स्पष्ट उल्लेख आवश्यक होगा. एग्रीकेटर वो होता है जो एग्रिकेशन सम्बन्धी सेवाएँ प्रदान करने के लिए किसान तथा स्पोंसर के मध्य बिचौलिए के रूप में कार्य करता है. राज्य सरकार कृषि समझौतों की इलेक्ट्रोनिक रजिस्ट्री के लिए एक रजिस्ट्रेशन ओथिरीटी स्थापित करेगी, जो राज्य के अंदर होने वाले कृषि समझौतों को पंजीकृत करेगी.
समझौते में कृषि उत्पाद की सप्लाई, गुणवत्ता, मानदंड व मूल्य से सम्बंधित नियमों तथा शर्तों का उल्लेख होगा. ये नियम व शर्ते खेती अथवा पालन की प्रक्रिया के दौरान या डिलीवरी के समय निरिक्षण तथा प्रमाणिकरण का विषय ही सकतें हैं. कृषि समझौता केंद्र तथा राज्य सरकार की विभिन्न योजनाओं के अंतर्गत या किसी अन्य वित्तीय सेवा प्रदाता के बीमा या ऋण उत्पादों से भी लिंक किया जा सकता है. इससे किसान व स्पोंसर दोनों का वित्तीय जोखिम कम होगा तथा ऋण मिलना सुनिश्चित होगा. यह अधिनियम स्पोंसर को कृषि समझौते के आधार पर किसान की जमीन या परिसर पर स्थायी बदलाव करने या अधिकार करने का निषेध करता है यानी रोक लगाता है, माने स्पोंसर कांट्रेक्ट के बहाने किसान की जमीन या परिसर पर न अधिकार कर सकता है न ही कोई स्थायी परिवर्तन कर सकता है.
कांट्रेक्ट की अवधि कम से कम एक फसल मौसम, एक पशु प्रजनन चक्र अथवा अधिकतम 5 वर्ष की अवधि के लिए किया जा सकेगा. न्यूनतम अवधि या 5 वर्ष बाद उत्पादन चक्र के लिए समझौते की अधिकतम अवधि को किसान व स्पोंसर आपस में तय कर सकेंगे.
इन कृषि समझौतों के अंतर्गत कृषि उत्पाद को उन सभी राज्य कानूनों से छूट मिलेगी जो कृषि उत्पाद की बिक्री व खरीद को नियंत्रित करते हैं. इन उत्पादों को अनिवार्य वस्तु अधिनियम के प्रावधानों से भी छूट मिलेगी तथा उनपर अधिकतम भण्डारण सीमा लागू नहीं होगी.
कृषि उत्पाद की खरीद का मूल्य समझौते में दर्ज करना होगा, मूल्य में बदलाव की स्थिति में ये बिंदु समझौते में शामिल होने चाहिए – (क) ऐसे उत्पाद के लिए गारंटीशुदा मूल्य तथा (ख) गारंटीशुदा मूल्य के अतिरिक्त राशि जैसे बोनस या प्रीमियम का स्पष्ट सन्दर्भ. ये सन्दर्भ मौजूदा मूल्यों तथा अन्य निर्धारित मूल्यों से सम्बन्धित हो सकते हैं. गारंटीशुदा मूल्य के सहित किसी अन्य मूल्य के निर्धारण के तरीके व अतिरिक्त राशि का उल्लेख भी कृषि समझौते में होना आवश्यक है.
उत्पाद के पूर्ण होने के बाद डिलीवरी के बारे में अधिनियम स्पष्ट रूप से कहता है की समय पर डिलीवरी लेने के लिए सभी तैयारियों का जिम्मा स्पोंसर पर होगा तथा उसे समय पर डिलीवरी लेनी होगी. बीज उत्पादन के मामले में स्पोंसर डिलीवरी के समय निश्चित राशी का कम से कम 2 तिहाई हिस्सा चुकाएगा. शेष राशी डिलीवरी की तारीख से 30 दिन के भीतर देय सर्टिफिकेशन के बाद चुकानी होगी. सामान्य मामलों में डिलीवरी के समय ही स्पोंसर द्वारा पूरी राशी चुकानी होगी तथा बिक्री-आय के विवरण वाली रशीद देनी होगी. भुगतान के तरीके को राज्य सरकार निर्दिष्ट करेगी.
किसी प्रकार की विवाद की स्थिति में SDM की अध्यक्षता में एक सुलह बोर्ड बनाया जायेगा, जिसमें दोनों पक्षों का बराबर प्रतिनिधित्व होगा, अगर यह बोर्ड तीस दिन में मामले को नहीं सुलझा पाता है तो पक्षकार किला कलेक्टर या एडिशनल जिला कलेक्टर की अध्यक्षता वाली अपीलीय ओथिरिटी में अपील कर सकतें हैं, ओथिरीटी को आवेदन मिलने के तीस दिनों के भीतर विवाद का निपटारा करना होगा. मजिस्ट्रेट या अपीलीय प्राधिकरण समझौते का उल्लंघन करने वाले पक्ष पर जुर्माना लगा सकेंगे. यहाँ पर किसान को सुरक्षा देने के लिए प्रावधान किया गया है की किसी भी प्रकार के बकाये की वसूली के लिए किसान की खेती की जमीन के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं की जा सकेगी.
3. अनिवार्य वस्तुएं संशोधन अधिनियम 2020
यह अधिनियम अनिवार्य वस्तुएं एक्ट 1955 में संशोधन करता है. अधिनियम केंद्र सरकार को खाद्य पदार्थ, उर्वरक तथा पेट्रोलियम उत्पाद को अनिवार्य वस्तुओं के रूप में निर्दिष्ट करने का अधिकार देता है. केंद्र सरकार इन अनिवार्य वस्तुओं के उत्पादन, सप्लाई, वितरण, व्यापार, तथा वाणिज्य को रेग्युलेट तथा प्रतिबंधित कर सकती है.
अधिनियम में यह प्रावधान किया गया है की केंद्र सरकार मात्र असमान्य स्थितियों में ही खाद्य पदार्थो जैसे अनाज, आलू, प्याज, खाद्य तेल, खाद्य तिलहन की सप्लाई को रेग्युलेट कर सकती है. यहाँ असमान्य स्थिति से तात्पर्य है – युद्ध, अकाल, असमान्य मूल्य वृद्धि तथा गंभीर प्रकृति की प्राकृतिक आपदा.
अधिनियम के अंतर्गत केंद्र सरकार यह नियंत्रित कर सकती है की कोई व्यक्ति किसी अनिवार्य वस्तु का कितना स्टॉक रख सकता है. अधनियम में यह अपेक्षा की गई है विशिष्ट वस्तुओं की स्टॉक सीमा मूल्य वृद्धि पर आधारित हो. स्टॉक की सीमा इन स्थितियों में लागू की जा सकती है – (क) अगर बागवानी उत्पाद के खुदरा मूल्यों में 100% की वृद्धि हो, (ख) नष्ट न होने वाले खाद्य पदार्थों के खुदरा मूल्यों में 50% की वृद्धि हो. वृद्धि की गणना पिछले 12 महीनों के मूल्य अथवा पिछले 5 महीनों के औसत खुदरा मूल्य में से जो भी कम होगा उसके आधार पर की जायेगी.
अधिनयम कहता है की कृषि उत्पाद के प्रोसेसर या वेल्यु चैन के हिस्सेदार पर स्टॉक सीमा लागू नहीं होगी, अगर उस व्यक्ति की स्टॉक सीमा इनमें से कम है – (क) प्रोसेसिंग की इन्सटाल्ड क्षमता की सीमा अथवा (ख) निर्यातक की स्थिति में निर्यात की मांग. यहाँ वेल्यु चैन में हिस्सेदारी से तात्पर्य है – ऐसा व्यक्ति जो उत्पादन में संलग्न हो अथवा कृषि उत्पाद की प्रोसेसिंग, पैकेजिंग, भंडारण, परिवहन से जुड़ा हो या वितरण के किसी चरण में कृषि उत्पाद का मूल्य संवर्धन करता हो.
अधिनियम के खाद्य पदार्थों के नियमन व स्टॉक लिमिट को लागू करने से जुड़े प्रावधान सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) तथा लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली से जुड़े आदेशों पर लागू नहीं होंगे. इन प्रणालियों के तहत सरकार पात्र व्यक्तियों को रियायती दरों पर खाद्यान्न उपलब्ध करवाती है.
यह अधिनियम कृषि क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा को बढाने, कृषि उत्पादों के भंडारण, कोल्ड स्टोरेज की क्षमता बढ़ाने तथा किसानों की आय में वृद्धि करने का प्रयास करता है, इसका लक्ष्य नियामक प्रणाली को उदार बनाना तथा उपभोक्ता के हितों की रक्षा करना है. यह अधिनियम कांटेक्ट फार्मिंग में किसानों के पक्ष में हैं जबकि कोर्पोरेट के खिलाफ है. किसान इस अधिनियम के अनुसार किसी इंडस्ट्री के साथ कांट्रेक्ट कर सकता है लेकिन उत्पाद का कही अन्य अधिक मूल्य मिलने पर उसे बेच सकता हैं. यह अधिनियम किसान को यह सुविधा देता है की कांट्रेक्ट करने के समय अगर उत्पाद का मूल्य कम रखा गया हो लेकिन डिलीवरी के समय अगर उत्पाद की मार्किट रेट कांट्रेक्ट की रेट से बढ़ जाए तो उस वृद्धि दर (प्रतिशत) के अनुसार स्पोंसर को किसान को भुगतान करना होगा. इसके अतिरिक्त प्राकृतिक आपदा ( ओला, बारिश, बाढ़, अकाल आदि ) के कारण अगर कांट्रेक्ट के बाद किसान उत्पादन न कर पाए तो इस स्थिति में स्पोंसर फसल के औसत उत्पादन के आधार पर किसान को भुगतान करेगा.
ये बिल किस तरह से किसानों के लिए फायदेमंद हैं ?
ये बिल भारत में खेती-किसानी के क्षेत्र में व्यापक बदलाव करने वाला हैं. वर्तमान में किसानों को MSP मात्र कुछ फसलों पे मिलती है, इनके अतिरिक्त किसान अनेक उत्पाद ( अनाज, फसल, सब्जियां आदि ) उत्पादित करता है तथा बाजार में बेचता हैं, जिनपर MSP नहीं मिलती, जिनको मज़बूरी में उसे कम भावो पर स्थानीय आढतियों, बिचौलियों व्यापारियों के माध्यम से बेचना पड़ता था. लेकिन अब इन बिलों के माध्यम से किसान को अपने देश या देश के बाहर विभिन्न माध्यमों से अपना उत्पाद बेचने का अवसर मिला है, किसान को पुरे देश में अपने उत्पादों के लिए एक समान बाजार मिला हैं, जिससे किसानों को लाभ होगा. यह अधिनियम किसानों को बिचौलियों, आढ़तियों व मंडियों के चंगुल से मुक्त कर मजबूती प्रदान कर रहें हैं।
ये कानून किसानी के क्षेत्र में पिछले 73 वर्षों में आया सबसे बड़ा क्रन्तिकारी बदलाव है. अब तक यह होता था की किसान को अपनी फसल बेचने के लिए अपने क्षेत्र की APMC द्वारा संचालित मंडियों के माध्यम से अपना समान बेचा करते थें, जहाँ मंडी में कार्यरत आढतियों के माध्यम से उसे अपना उत्पाद बेचना पड़ता था, यहाँ किसान के उत्पाद पर लगभग 8.5% टेक्स देना पड़ता था, जिसमें 2.5% आढतियों का कमिशन होता था, आढतीये अपने अनुसार रेट तय कर के खरीदी करते थें, जिससे किसानों को नुकसान होता था. लगभग सभी किसान संगठन व किसान नेता इस व्यवस्था के खिलाफ थे, जिसका लगातार विरोध करते थें, इन नए कानूनों से किसानों को अब आढतियों की इस प्रताड़ना से मुक्ति मिलेगी.
नये कृषि सुधारों की वजह से किसानों को अपना उत्पाद बेचने में अब सहूलियत मिलेगी, किसान जहां MSP में मंडियों में अपने उत्पाद पहले की तरह बेच सकेगा वही अब उसके पास निजी क्षेत्र में MSP से अधिक मूल्य मिलने पर अपना उत्पाद बेचने का अवसर है।
वर्तमान समय में बड़ी कृषि उत्पादों से जुड़ी कंपनियां, फर्म मंडियों के माध्यम से अपने उत्पादन के लिये कृषि उत्पाद खरीदती है, जिससे उन्हें उत्पाद मंहगा पड़ता है. अब नयी व्यवस्था में किसानों से सीधे खरीदने के कारण वो किसानों से MSP से अधिक दाम पर आसानी से उत्पाद खरीद सकेगी, वो उत्पाद उन्हें मंहगा भी नहीं पड़ेगा, क्योंकि पहले जो अतिरिक्त धन उन्हें मंडी से खरीदने के कारण खर्च करना पड़ता था वो बचेगा जिससे वो किसानों को उचित मूल्य दे पायेंगे। इस विषय की चिंता भी निराधार है कि इन अधिनियमों से कॉरपोरेट किसान का शोषण करेगा, क्योंकि किसान कॉरपोरेट को तभी समान बेचेगा जब उसे वो MSP से अधिक मूल्य दे रहा हो, यहाँ किसान अपने उत्पाद का मूल्य स्वयं तय करने के लिये सक्षम है.
पहले यह होता था कि किसान को अपना उत्पाद बेचने के लिए उसे लाद कर मंडी लाना होता था, जहाँ उसे कई बार कुछ दिनों तक सही भाव का इंतज़ार करना पड़ता था जिससे उसके भाड़े का खर्चा बढ़ता था, कई बार यह होता था की किसानों को कई दिनों तक अपने उत्पाद का उचित भाव नहीं मिलता था जिससे उसके भाड़े का खर्चा बढता रहता था जिसकी वजह से उसे औनेपौने दाम पर अपना माल बेचना पड़ता था, नवीन व्यवस्था में ऐसा नहीं होगा, इसमें किसान अपने मूल्यों पर व्यक्ति या फर्म से अपने उत्पाद का सौदा कर सकेगा तथा खरीददार किसान के पास आकर उत्पाद ले जाएगा, इससे किसान को अपने उत्पाद का उचित मूल्य मिलने के साथ ही उसका भाड़े का खर्च भी बचेगा. इससे छोटे किसानों को सर्वाधिक लाभ होगा, वो अपने फसल का अच्छा मूल्य पाने के साथ भाड़े के आवश्यक खर्च से बच सकेगा।
कॉन्ट्रैक्ट खेती में भी किसान के हितों को संरक्षित किया गया है, यहां किसान अपनी शर्तों पर मूल्य तय करने, तय किये गये मूल्य से अधिक उत्पादन के समय खुदरा मूल्य होने पर उसके बराबर बोनस का अधिकारी है, प्राकृतिक कारणों से अगर उत्पादन कम हो अथवा न हो तो स्पॉन्सर किसान को क्षतिपूर्ति देने के लिये बाध्य है, ये नियम किसान के हितों को संरक्षित करने के साथ ही स्पॉन्सर ( कॉरपोरेट, व्यापारी ) को उसके हितों के संरक्षण हेतु एकतरह से बाध्य करतें हैं. इन नए कॉन्ट्रैक्ट खेती के नियमों से छोटे किसानों को लाभ होगा।
आवश्यक वस्तु अधिनियम में संशोधन कर के सरकार के किसान को खुला बाजार मुहैया करवाने का सुंदर फैसला किया है. इससे किसान को अब अपने उत्पादों को बेचने की स्वतंत्रता मिलेगी, किसान को एक बड़ा बाजार मिलेगा. इससे कोल्ड स्टोरेजों की क्षमता का विकास होगा तथा किसानों को भण्डारण की सुविधा मिलेगी। ये तीनों अधिनियम कृषि क्षेत्र में जहाँ जटिल व एकाधिकार वाली मंडी तथा आढ़तियों की व्यवस्था को क्षतिग्रस्त कर रहें हैं वही किसानों तथा किसान सहकारी संगठनों को मजबूत करने का कार्य कर रहें हैं।
इन बिलों का समुचित लाभ किसान चाहे तो अपनी समझदारी से उठा सकतें हैं, किसान सहकारी संगठनों को मजबूत बनाने के समुचित अवसर इन अधिनियमों ने किये हैं, किसान सहकारी संगठन चाहे तो इनका लाभ उठा कर स्वयं को, अपने से जुड़े किसानों को तथा अपने गांव-जवार को मजबूत कर सकते हैं, विकसित कर सकतें हैं। सहकारी संगठन के माध्यम से बने इलेक्ट्रॉनिक ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म किसी कॉरपोरेट के मुकाबले अधिक किसान हितैषी व सफल हो सकतें हैं। अगर किसी किसान सहकारी संगठन के माध्यम से किसी गांव के किसान ऑर्गेनिक फार्मिंग करते हैं तो वो इन नये अवसरों में अपना ब्रांड बना सकतें हैं तथा अपनी शर्तों पर अपना माल बाजार में बेच सकतें हैं.
किसान सहकारी संगठन चाहे तो किसानों के उत्पादों के भंडारण हेतु कोल्ड स्टोरेज आदि का निर्माण कर के भंडारण व वितरण के मध्य वेल्यू चैन का हिस्सा बन सकते हैं. इससे ये मुनाफा कमाने के साथ अपने क्षेत्र में अपने किसानों को भण्डारण की सुविधा देने के साथ उनकी आय की बढ़ोतरी में सहयोगी हो सकतें हैं.
ये तीनों अधिनियम कृषि क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव लायेंगे, इनसे कृषि क्षेत्र में नया निवेश आयेगा, नयी प्रौद्योगिकी आयेगी, आधुनिक उपकरण आयेंगे, बेहतर बीजों की वयस्था विकसित होगी, किसान अधिक उत्पादन कर सकेंगे, दो सीजन के मध्य ली जाने वाली फसलों की मात्रा बढ़ेगी, बेहतर रसद की बाजारों तक मुक्त आपूर्ति व्यवस्था बनेगी जिसकी वजह से अर्थयव्यस्था का सुदृढ़ीकरण होगा तथा GDP में कृषि क्षेत्र की हिस्सेदारी बढ़ेगी. इन अधिनियमों से भारत की 50% वर्कफोर्स जो कि किसान हैं, जिनकी आय बढ़ेगी, जिससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था में भी सुधार होगा, भारत की ग्रामीण आय में उल्लेखनीय वृद्धि होगी. अगर इनका अक्षरशः पालन किया गया तो इससे सभी प्रकार की वस्तुओं व सेवाओं की मांग में वृद्धि देखने को मिलेगी जिससे भारत के कुल GDP विकास को गति मिलेगी.
इन तीनों बिलों का सामूहिक असर बड़ा व्यापक है जो आगामी 10 वर्षों में हमारे सामने समक्ष होगा, त्वरित असर हमें इसी वर्ष ही दिखना शुरू हो जायेगा, अगर इन अधिनियमों का अक्षरशः पालन किया जाये तो ये कृषकों की आय बढ़ने के साथ कृषि संसाधनों का भी विकास होगा, जिससे भारत में कृषि तथा कृषकों का विकास होगा. कुछ विश्लेषकों का मानना है कि यह बिल 1947 के बाद भारत में कृषि क्षेत्र में किये गये सबसे बड़े बदलाव है, कुछ का कहना है कि 1991 में किये गये आर्थिक सुधारों की तरह यह सुधार भी भारत में दूरगामी परिवर्तन लायेंगे. मेरा मानना है कि हमारी सरकारों ने जब-जब जिस क्षेत्र को सरकारी नियंत्रण से मुक्त किया है, तब-तब उस क्षेत्र ने प्रगति की है, अब भारत कर कृषि क्षेत्र व किसानों की बारी है.
विपक्ष, कांग्रेस, अकाली दल, NCP और वामपंथी किसान संगठन इन कानूनों का विरोध क्यूँ कर रहें हैं ?
कांग्रेस के विरोध के विषय में मैं लेख के शुरुआत में बता चूका हूँ की इनका विरोध बिलकुल राजनीतिक हैं, अन्यथा ये सुधार कांग्रेस द्वारा ही देश के सामने सबसे पहले रखे थें, अतः वर्तमान में राजनितिक लाभ के लिए इनका विरोध कर के कांग्रेस स्वयं अपना नुकसान कर रही हैं. जहाँ तक अकाली दल व NCP का प्रश्न हैं, इन दोनों दलों का विरोध राजनीतिक होने के साथ ही व्यक्तिगत भी है। इन दोनों दलों के प्रमुखों परिवारों का कृषि से जुड़ा व्यापार है जो कि मुख्यतः कोल्ड स्टोरेज व कृषि उत्पादों के विपणन का है, जिसको इन अधिनियमों से काफी नुकसान होगा, इससे इन क्षेत्रों में इनके लगभग एकाधिकार को अब सक्षम बड़े किसानों, सहकारी संगठनों, कॉरपोरेट से चुनौती मिलेगी जिसकी वजह से इनका विरोध करना बनता है।
एक अनुमान के देश में इस समय 7-8 लाख आढ़तिये व्यवस्था में हैं, जिनके हाथों में अब तक कृषि उत्पादों का मूल्य तय करने की क्षमता थी, इनके माध्यम से कमीशनखोरी भी की जाती थी, जिनको इन तीनों अधिनियमों से सार्वधिक नुकसान की संभावना है, वर्तमान में देखे जा रहें किसान आंदोलनों व इन अधिनियमों के प्रति किये जा रहे दुष्प्रचारों में इनका प्रमुख योगदान है. आढ़तियों का प्रभाव विभिन्न किसान संगठनों तथा किसान नेताओं पर भी देखने को मिलता है, अतः इन अधिनियमों के विरोध को इनका समर्थन मिलना लाजमी ही है. भारत के किसान भोले होते हैं, सरकार से ज्यादा उनका विश्वास अपने आसपास रहने वाले आढ़तियों पर विश्वास अधिक देखने को मिलता है, ऐसे में किसान इनके बहकावे में न आये इस हेतु सरकार को इन अधिनियमों के प्रति विभिन्न माध्यमों से व्यापक जागरूकता अभियान चलाना चाहिये.
पंजाब व हरियाणा में हमें इन कानूनों का अधिक विरोध देखने को मिल रहा है, जिसका कारण है वहां की मजबूत APMC व आढ़तियों की व्यवस्था। यहां की मंडियों में वर्तमान में अधिकतम पदाधिकारी कांग्रेस तथा अकाली दल से जुड़े हुये है, अतः यहां किसानों का आंदोलन होना लाजमी है, जिसके प्रमुख कारण ऊपर वर्णित है। इन राज्यों में कृषि उत्पादों के वितरण, प्रबंधन तथा भंडारण के क्षेत्र में कई बड़े किसानों का व्यापार वर्षों से चला आ रहा है, अपने राजनितिक रसूख, कृषि कानूनों की कमजोरी व बिचौलियों का लाभ उठाकर ये बड़े किसान एक तरह से छोटे किसानों का आजतक दोहन करते आ रहे थे लेकिन अब इन बड़े किसानो, बिचौलियों, आढतियों का यह दोहन रूकने जा रहा हैं, किसान अब इनके चंगुल से स्वतंत्र होने जा रहा है, ऐसे में इनका विरोध लाजमी है, लेकिन यह विरोध ज्यादा समय तक नहीं चल सकता, समय के साथ किसान जब इन अधिनियमों में नियमित अपने हित को समझेगा इनका साथ तुरंत छोड़ देगा.
पिछले 70 वर्षों से भारत में काम करने वाले अधिकांश किसान संगठन चाहे वो कांग्रेस या वामपंथी विचारधारा से जुड़े हो या संघ आदि से जुड़े हो अथवा स्वतंत्र हो, इसी प्रकार के कृषि सुधारों की मांग कर रहे थें, इन्हें लगता था की कोई भी सरकार भारत में मजबूत मंडी, आढतियों व बिचौलियों की व्यवस्था को छेड़ने की हिम्मत नहीं करेगी और उनकी राजनीति चलती रहेगी. लेकिन मोदी सरकार इन सुधारों को ले आई जिससे इन किसान संगठनों के हाथों से एक बड़ा मुद्दा फिसल गया अतः अब ये किसानों के मध्य भ्रम फैलाकर अपनी राजनीतिक कर रहें हैं, जो इस सूचना के युग में लम्बे समय तक नहीं चल सकता है.
इन अधिनियमों से जुड़ी प्रमुख शकायें व उनके समाधान –
अगर MSP की प्रक्रिया पूर्ववत रहेगी तो उसे बिल में लिखा क्यों नहीं गया ? अथवा MSP खत्म कर दी गई है.
क्योंकि MSP एक प्रशासनिक व्यवस्था है वैधानिक नहीं। जिसको समयानुसार लचीलेपन से बढ़ाया जाता है. दूसरी बात बिल में MSP खत्म करने का प्रावधान कही नहीं किया गया है, बल्कि MSP पूर्व की भांति जारी रहेगी, इसी क्रम में केंद्र सरकार ने विभिन्न फसलों पर MSP में वृद्धि भी की है. ये बिल किसानों को MSP से अधिक बाजार मूल्य मिले इसकी व्यवस्था करतें हैं.
किसान द्वारा मंडी के बाहर की जा रही निजी लेनदेन में MSP कैसे सुनिश्चित किया जायेगा ?
इसमें कोई रॉकेट साइंस नहीं है. निजी क्षेत्र में कृषि उत्पादों की दरें MSP से अधिक मिलेगी तभी किसान उनके पास जायेगा, नहीं तो उसके पास मंडी व्यवस्था पहले की तरह कार्यरत है जो उसे MSP दिलवायेगी.
कांट्रेक्ट के माध्यम से किसान को आसानी से फंसाया जा सकेगा.
ये बेबुनियाद है, अधिनियम के अनुसार अगर किसी किसान ने स्पॉन्सर से कोई अग्रिम राशि न ली हो तो वो अनुबंध पर हस्ताक्षर करने के बाद भी किसी भी समय उसे छोड़ सकता है. अगर उसने कोई अग्रिम भुगतान लिया हो तथा वो उसे लौटा दे ( बिना ब्याज के ) तो भी वो अनुबंध तोड़ने के लिये स्वतंत्र है.
किसान निजी फर्म्स, व्यापारियों से कैसे व्यापार कर सकेगा ?
आसानी से, अब यहाँ किसानों के पास चुनने के लिये एक नहीं हजारों फर्म्स होगी, इनमें से जिनका ऑफर व मूल्य उसे अपने अनुकूल लगेगा वो उसे चुनने में सक्षम होगा, अपने फायदे का सौदा चुनने की समझ किसानों में हैं, किसान अपने उत्पादों का व्यापारी बनने में सक्षम है, कई बड़े किसान पहले से ही किसान उत्पादों के व्यापार में अपने इसे स्वाभाविक व्यापारी गुण के कारण लंबे समय से मौजूद हैं तथा मुनाफा कमा रहें हैं.
क्या कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग में किसान अपनी जमीन को सुरक्षित रख पायेगा ?
बिल्कुल, यह कानून किसानों की जमीन को सबसे पहले सुरक्षित करता है,किसानों की पसन्द के अनुसार निर्दिष्ट समय तक निर्दिष्ट उत्पादों के उत्पादन का अनुबंध करता है. किसानों की जमीन की बिक्री या पट्टे को गिरवी रखने को प्रतिबंधित करता है, मात्र उत्पाद व उत्पादन पर अनुबंध करने की अनुमति देता है जमीन पर नहीं.
APMC के अंतर्गत जारी मंडी व्यवस्था बन्द हो जाएगी.
यह गलत है, मंडी व्यवस्था पहले की भाँति जारी रहेगी.