राज ठाकरे की चर्चित मेगा रैली में कुछ बड़े ऐलान की संभावना है। इसी तरह बाला साहब ने भी 1988 में औरंगाबाद मंच का इस्तेमाल अपने हिंदुत्व कार्ड को खेलने के लिए किया था।
महाराष्ट्र/इंडियामिक्स तैयारी पूरी हो चुकी है, मंच सज चुका है। महाराष्ट्र में हिंदुत्व की नई ब्रॉडिंग की पूरी तैयारी है। ट्रेलर के बाद अब पूरी फिल्म रिलीज होगी। इस जंग का आगाज होगा और ठाकरे परिवार के दो दिग्गज आमने-सामने होंगे। जिस औरंगाबाद को राज ठाकरे संभाजी नगर कहते हैं वो सज कर तैयार है। कुर्सियां लग चुकी हैं और समर्थकों में उत्साह है व शाम के 5 बजे का इंतजार है। जब इसी मंच से राज ठाकरे गरजने वाले हैं, जिस मैदान से कभी उनके चाचा और शिवसेना के संस्थापक बाला साहब ठाकरे ने 34 साल पहले रैली को संबोधित किया था और विशाल रैली के जरिये हिंदुत्व के प्रखर रुख का आगाज किया था। ये महज संयोग है या फिर सोची-समझी रणनीति कि हिंदुत्व की राजनीति के महाराष्ट्र में झंडाबदार शिवसेना के खिलाफ राज ठाकरे ने बाला साहब की विरासत को लपकने के प्रयास के लिए संभाजीनगर को ही चुना।
राजा ठाकरे की चर्चित मेगा रैली में कुछ बड़े ऐलान की संभावना है। इसी तरह बाला साहब ने भी 1988 में औरंगाबाद मंच का इस्तेमाल अपने हिंदुत्व कार्ड को खेलने के लिए किया था। शिवसेना नेता ने लोगों से खान (मुसलमानों का प्रतिनिधित्व करने के लिए ध्रुवीकरण वाला शब्द) और बाण (धनुष और तीर का सेना का चुनाव चिन्ह) के बीच चयन करने का आह्वान किया था। 1980 के दशक तक बाल ठाकरे के नेतृत्व में शिवसेना ने पहले ही मुंबई और ठाणे में एक बड़ी ताकत के रूप में खुद को स्थापित कर लिया था, और औरंगाबाद की रैली ने पार्टी को मराठवाड़ा क्षेत्र में अपने पैर जमाने में मदद की। आगामी औरंगाबाद नगर निगम चुनावों में, शिवसेना ने 60 में से 27 सीटें जीतीं। सबसे बड़ी पार्टी होने के बावजूद, शिवसेना सत्ता में नहीं आ सकी क्योंकि कांग्रेस और मुस्लिम लीग ने सत्ता पर दावा करने के लिए हाथ मिलाया। कांग्रेस ने डॉ शांताराम काले को मेयर और मुस्लिम लीग के तकी हसन को डिप्टी मेयर नियुक्त किया।
औरंगाबाद का नाम संभाजी करने की मांग
बाल ठाकरे ने नगरपालिका चुनावों में शिवसेना के आश्चर्यजनक प्रदर्शन के लिए एक विजय रैली निकाली, जिस दौरान उन्होंने औरंगाबाद को छत्रपति शिवाजी महाराज के बेटेसंभाजी के नाम पर संभाजीनगर के रूप में रखने की मांग उठाई। कहा जाता है कि मुगल बादशाह औरंगजेब ने संभाजी को मार डाला था। औरंगाबाद की रैली ने शिवसेना को मुंबई से बाहर हिंदुत्व की राजनीति फैलाने में मदद की। अगले वर्ष लोकसभा चुनाव में पार्टी ने चार सीटें जीतीं। इनमें से दो औरंगाबाद और परभणी मराठवाड़ा क्षेत्र के थे।
34 साल बाद उसी जगह को चुना
इत्तेफाक हो या रणनीति कि 34 साल बाद मनसे ने अपने कट्टर हिंदुत्व को आगे बढ़ाने के लिए उसी शहर और जगह को चुना है। मनसे महासचिव और राज ठाकरे की चचेरी बहन शालिनी ठाकरे ने कहा, ‘मनसे अपनी राजनीति और एजेंडे को आगे बढ़ा रही है। हम किसी पार्टी या नेता का अनुकरण नहीं कर रहे हैं। पिछले कुछ महीनों में हुई हमारी आंतरिक बैठकों में यह महसूस किया गया कि मनसे अध्यक्ष को अपनी सभी रैलियों को मुंबई तक ही सीमित नहीं रखना चाहिए। राज्य भर में रैलियां आयोजित करके, हम न केवल विभिन्न शहरों और क्षेत्रों में अपने कार्यकर्ताओं तक पहुंच सकते हैं, बल्कि लोगों के एक बड़े वर्ग तक भी पहुंच सकते हैं।”