जब पहली बार चुनाव लड़े थे तो एक नोट, एक वोट उनका नारा था. अखाड़े से निकलकर मुलायम सिंह यादव ने पहला कदम टीचर के रूप में मैनपुरी के एक स्कूल में रखा था
समाजवादी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव की मृत्यु सपा के लिए बड़ा झटका है. पार्टी जब विधानसभा चुनावों की हार को भूलकर 2024 के लोकसभा चुनाव की तैयारी में जुटी थी.अपने को दोबारा उबारने की कोशिश कर रही थी, उस समय नेता जी ने दुनिया को अलविदा कह दिया. करीब 6 दशकों से समाजवादी विचारधारा को आगे बढ़ाने में लगे नेताजी हमेशा कहा करते थे राजनीति में अपनी पकड़ बनाए रखने के लिए चर्चा, पर्चा और खर्चा तीन चीजों की बहुत जरूरत है. वह कहते थे किसी भी नेता के लिए हर समय चर्चा में बना रहना चाहिए. कोई चुनाव आए तो पर्चा भरने में देरी नहीं करना चाहिए और खर्चे के लिए पैसा जुटाने का कोई भी मौका नहीं छोड़ना चाहिए नेताजी ₹1 तक का भी चंदा लेते थे.
जब पहली बार चुनाव लड़े थे तो एक नोट, एक वोट उनका नारा था. अखाड़े से निकलकर मुलायम सिंह यादव ने पहला कदम टीचर के रूप में मैनपुरी के एक स्कूल में रखा था लेकिन यहां उनका मन ज्यादा दिन तक रम नहीं पाया और वे राजनीति में आ गए । उस दौर में मुलायम के पास साइकिल के अलावा कुछ नहीं था। उन्हें जिताने के लिए पूरे गांव ने उपवास रखा। जिसके बाद मुलायम विधायक ही नहीं तीन बार सूबे के सीएम बने और केंद्र में रक्षा मंत्री तक का सफर तय किया.मुलायम सिंह इटावा से बीए की पढ़ाई करके टीचिंग कोर्स के लिए शिकोहाबाद चले गए। बात 1965 की है, उनकी करहल के जैन इंटर कॉलेज में मास्टर की नौकरी लग गई।
नौकरी लगे दो साल ही हुए थे मुलायम सिंह यादव के राजनीतिक गुरू नत्थू सिंह ने 1967 विधानसभा चुनाव में अपनी सीट जसवंतनगर से मुलायम सिंह यादव को उतारने का फैसला लिया। राम मनोहर लोहिया से वकालत की और नाम पर औपचारिक मुहर भी लग गई। सिंह ने खुद के लिए करहल सीट चुनी थी। मुलायम को जब मालूम हुआ कि उन्हें जसवंतनगर से सोशलिस्ट पार्टी के लिए चुनाव लड़ना है तो वह प्रचार के लिए जुट गए। उनके दोस्त दर्शन सिंह के पास साइकिल थी। वह दर्शन सिंह के साथ उनके पीछे बैठकर चुनाव प्रचार के लिए जाते थे। पैसे उन्होंने एक वोट, एक नोट का नारा दिया। मुलायम चंदे में एक रुपया मांगते और ब्याज सहित लौटाने का वादा करते।जसवंतनगर में मुलायम सिंह यादव की लड़ाई हेमवती नंदन बहुगुणा के करीबी और कांग्रेस प्रत्याशी एडवोकेट लाखन सिंह से था। मुलायम ने पहली लड़ाई में ही मैदान फतह किया। वह 28 साल की उम्र में विधायक बन गए।मुलायम सिंह यादव तीन बार मुख्यमंत्री रहे। पहली बार पांच दिसंबर 1989 से 24 जून 1991 तक, दूसरी बार पांच दिसंबर 1993 से 3 जून 1995 तक और तीसरी बार 29 अगस्त 2003 से 13 मई 2007 तक मुख्यमंत्री रहे। जून 1996 से 19 मार्च 1998 तक भारत के रक्षा मंत्री रहे।
एक साधारण किसान परिवार में जन्म लेने वाले मुलायम सिंह ने अपना राजनीतिक जीवन उत्तर प्रदेश में विधायक के रूप में शुरू किया। बहुत कम समय में ही मुलायम सिंह का प्रभाव पूरे उत्तर प्रदेश में नज़र आने लगा। मुलायम सिंह ने उत्तर प्रदेश में अन्य पिछड़ा वर्ग समाज का सामाजिक स्तर को ऊपर करने में महत्वपूर्ण कार्य किया। सामाजिक चेतना के कारण उत्तर प्रदेश की राजनीति में अन्य पिछड़ा वर्ग का महत्वपूर्ण स्थान हैं। समाजवादी नेता रामसेवक यादव के प्रमुख अनुयायी थे तथा इन्हीं के आशीर्वाद से मुलायम सिंह 1967 में पहली बार विधान सभा के सदस्य चुने गये और मन्त्री बने। 1992में उन्होंने समाजवादी पार्टी बनाई। उत्तर प्रदेश में यादव समाज के सबसे बड़े नेता के रूप में मुलायम सिंह की पहचान है। उत्तर प्रदेश में सामाजिक सद्भाव को बनाए रखने में मुलायम सिंह ने साहसिक योगदान किया। मुलायम सिंह की पहचान एक धर्मनिरपेक्ष नेता की थी।